एक और आख़िरी मौक़ा

एक और आख़िरी मौक़ा

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार। तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।। ~कबीर साहब

प्रश्नकर्ता: संसार में मनुष्य जन्म मुश्किल से मिलता है। यह मानव शरीर उसी तरह बार-बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता। तो क्या मनुष्य शरीर बार-बार जन्म लेता है?

आचार्य प्रशांत: कबीर इतना ही तो कह रहे हैं कि:

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार । तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार ।।

कबीर ने तो इतना ही कहा है, बाकी सब तुम्हारी कल्पना है। कबीर ने कहा कि जो भी है वो अभी सामने है, और वो दोबारा लौटकर के नहीं आएगा। ‘देह न बारम्बार’, बार-बार देह नहीं आएगी। ठीक है, बार-बार कुछ नहीं आता तो देह ही कहाँ से आएगी? ऐसा क्या है जो बार-बार आता हो सामने? कुछ भी है जो कभी लौटा है, तो देह कहाँ से लौटकर आ जाएगी?

और देह भी जब कह रहे हैं कबीर, तो उनका इशारा किसी एक विशिष्ट वस्तु की ओर नहीं है। आपकी देह भी जो इस क्षण है अगले क्षण वही नहीं रहती है। अभी की जो देह है, वही बदल जानी है। समय का अर्थ ही यही है कि जो कुछ था, वो बदलेगा। तो हमारे पास तो ये सांत्वना भी नहीं है कि देह का अर्थ है मेरा शरीर, जो कम से कम कुछ वर्ष चलेगा। ‘मेरा शरीर’ नाम की कोई वस्तु होती नहीं। कोई एक विशिष्ट वस्तु नहीं, वो भी प्रतिक्षण बदल रहा है। इस क्षण का शरीर अगले क्षण नहीं है, तो इस क्षण जो है उसको इसी क्षण पाया और इसी क्षण गँवाया भी। या तो इसी क्षण उसको जान लिया तो इसी क्षण में इसकी सार्थकता हुई। नहीं तो गँवा दिया तो गँवा दिया।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org