एकै साधे सब सधै
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प्राणान्प्रपीड्येह स युक्तचेष्टः श्रीणे प्राणे नासिकयोच्छवसीता।
दुष्टाश्वयुक्तमिव वाहमेनं विद्वान्मनो धास्येताप्रमत्तः॥
विद्वान् पुरूष को चाहिए कि आहार-विहार की सभी क्रियाओं को विधिवत् सम्पन्न करते हुए प्राणायाम की क्रिया करके जब प्राण क्षीण हो तो उसे नासिका से बाहर निकाल दे। जिस प्रकार सारथी दुष्ट अश्वों से युक्त रथ को अत्यन्त सावधानी से लक्ष्य की ओर ले जाता है, उसी प्रकार विद्वान् पुरूष इस मन को अत्यन्त…