एकाग्रता क्यों नहीं बनती?
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मेरा प्रश्न बच्चों के बारे में है। ऐसा नहीं है कि बच्चे सुनते नहीं हैं, पर उनका सुनना बड़ा चयनात्मक होता है। मुझे अपने बच्चे के साथ भी यही परेशानी होती है। जितना फोकस मेरा बच्चा खेलकूद में देता है, उतना ये पढ़ाई में नहीं देता है। इसका मतलब उसमें फोकस की प्रतिभा तो है, पर फिर वो सिर्फ़ उन्हीं चीज़ों पर फोकस करता है जो उसको अच्छी लगती हैं।
कई बार हमें ऐसी चीज़ों पर भी फोकस करना पड़ता है जो हमें तत्काल आकर्षक नहीं भी लग रही हैं, तो ‘डिलेड ग्रैटिफिकेशन’ (विलम्बित परितोषण) आना चाहिए। लेकिन मुझे समझ में नहीं आता कि मैं अपने बच्चे को कैसे समझाऊँ।
ऐसे में मैं क्या करूँ?
आचार्य प्रशांत: ‘डिलेड ग्रैटिफिकेशन*’ (विलम्बित परितोषण) किस क्षेत्र का? आप कोई हार्दिक ध्येय पकड़ें, और उसमें आपको तुरन्त परिणाम ना मिले तो अच्छी बात है कि आप कह रहे हैं कि, “मुझे बहुत जल्दी *ग्रैटिफिकेशन नहीं चाहिए, मैं प्रतीक्षा करने को तैयार हूँ क्योंकि मुझ में धैर्य है।” लेकिन सबसे पहले तो जो आप कर रहे हैं वो ‘हार्दिक’ होना चाहिए न? आप जो काम ही कर रहे हो, उसमें दिल नहीं हो, तो वो हार्दिक नहीं है।
प्र१: लेकिन आचार्य जी, अगर बच्चे स्कूल जाते हैं, तो उनको पास होने के लिए हर विषय में कुछ न्यूनतम अंक तो लाने ही होंगे। और अगर बच्चे के मन में ये बात है कि जो चीज़ अच्छी नहीं लगती है, उसे बिलकुल भी नहीं छूएँगे तो वो पढ़ाई कैसे करेगा?
आचार्य: तो वो पास तब भी हो जाएगा। न्यूनतम अंक बहुत ज़्यादा नहीं होते।