एकाग्रता और ध्यान में अंतर

संसार में जो भी वस्तुएँ हैं सब सीमित हैं, छोटी हैं। छोटे को जब लक्ष्य बनाओगे तो वो कहलाती है ‘एकाग्रता’ और अनन्त को जब लक्ष्य बना लेते हो तो वो कहलाता है ‘ध्यान’।

एकाग्रता बहुत काम नहीं आती क्योंकि छोटी चीज़ को ध्येय बनाया, तो जो मिलेगा वो छोटा ही होगा और छोटा पाकर के जी किसका भरता है?

छोटा-छोटा तो मिलता ही रहता है, हम बेचैन रहे आते हैं इसलिए फिर ध्यान आवश्यक है।

ध्यान का अर्थ है अनन्त को ध्येय बना लेना।

छोटा नहीं चाहिए, छोटा बहुत पा लिया, ख़ूब आज़मा लिया, ख़ूब अनुभव कर लिया, उससे मन भरता नहीं तब आदमी ध्यान में उतरता है।

आदमी कहता है “अब कुछ चाहिए जो बहुत बड़ा हो, अति विराट हो, अहंकार की सीमा से आगे का हो, असीम हो।”

ऐसा जब परम लक्ष्य बनाते हो, ऐसे जब ध्येय का वरण करते हो, तो तुम्हारी अवस्था को कहते हैं ‘ध्यान’।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org