ऊपर से नर, अंदर से पशु

शिक्षा के नाम पर हमको रोज़गार के साधन बता दिए जाते हैं। शिक्षा के नाम पर तुम्हें क्या दे दिया जाता है -

“वकील बन जाओ!”

“इंजीनियर बन जाओ!”

“डॉक्टर बन जाओ!”

ये सब क्या हैं? ये तो रोज़गार के धंधे हैं, शिक्षा कहाँ है इसमें!

शिक्षा कहाँ मिली है अभी तक, इंसान कहाँ बने? पशु को धंधा करना सिखाया जा रहा है, ये हमारी शिक्षा व्यवस्था है! अब वो धंधेबाज पशु बन जायेगा पर इंसान तो अभी भी नहीं बना न!

जैसे किसी गोरिल्ले ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग कर ली हो। पर है तो वो अभी गोरिल्ला ही।

इंसान बनने वाली शिक्षा हमें दी नहीं गयी है अभी तक। वो शिक्षा ले लो तो मन में जो भ्रम-संशय चल रहे हैं, वो हटेंगे। वो शिक्षा नहीं लोगे तो गोरिल्ला बने-बने भी बहुत कुछ कर सकते हो। गोरिल्ला बने-बने तुम कुछ भी बन सकते हो। किसी विश्वविद्यालय के कुलपति बन सकते हो, देशों के राष्ट्रपति बन सकते हो, बड़े व्यवसायी बन सकते हो, कुछ भी बन सकते हो! बहुत कुछ बन सकते हो, लेकिन रहोगे गोरिल्ला ही। वृत्तियाँ तुम्हारी सब गोरिल्ले की रहेंगी। इंसान नहीं बनोगे। नरपशु कहलाओगे।

क्या हो? नर नहीं, नरपशु।

बच्चा पशु पैदा होता है, मुक्त पुरुषों को नर मानना और ये जो पूरा समाज है उसे मानो नरपशु। हम न पशु हैं, न नर बन पाए, हम नरपशु हैं। ऊपर से नर, अंदर से पशु।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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