ऊँचा उठने को तैयार हो?

परमात्मा को स्वामी क्यों बोलते हैं? परमात्मा को स्वामी बोलना वास्तव में परमात्मा के विषय में कुछ नहीं बताता, क्योंकि परमात्मा को अपना स्वामित्व या प्रभुत्व दिखाने के लिए कोई दूसरा सामने है ही नहीं; परमात्मा जब है तो मात्र वही है, केवलीय अवस्था है। उसके अलावा दूसरा कोई नहीं है तो वो किस पर हुक्म चलाएगा भाई? वो स्वामी किसका? अद्वैत में कौन किसका स्वामी? इसी तरीके से अद्वैत में ज्ञान कहाँ? जब तक ज्ञान है तब तक कम-से-कम दो चाहिए: एक ज्ञाता, दूसरा ज्ञेय। तो वो जो उच्चतम है, न तो वो अधिपति हो सकता है, न सर्वज्ञाता हो सकता है।

क्यों कहा जा रहा है उसको अधिपति और सर्वज्ञाता? ताकि तुम्हें तुम्हारे बारे में कुछ पता चले। और यही जगह है जहाँ हमें पहले सूत्र का पुनः स्मरण कर लेना चाहिए। पहला सूत्र है कि, “जो भी बात कही जा रही है वो परमात्मा के बारे में बताने के लिए नहीं कही जा रही है, देवों के बारे में बताने के लिए नहीं कही जा रही है, हमारे बारे में बताने के लिए कही जा रही है।“ तो परमात्मा को सर्वज्ञ बोलकर और स्वामी बोलकर वास्तव में हमें हमारे बारे में बताया जा रहा है कि हम अल्पज्ञ हैं; वो सर्वज्ञ है, हम अल्पज्ञ हैं। वो स्वामी है, हम सेवक हैं; उसके नहीं सेवक हैं, इस अर्थ में सेवक नहीं हैं कि वो स्वामी है और हम उसके सेवक हैं, इस अर्थ में, कि वो संसार का स्वामी है और हम संसार के सेवक हैं। वो नहीं संसार का स्वामी है, पर हम अवश्य सेवक हैं संसार के। वो संसार का स्वामी है ये बात मात्र प्रतीकात्मक तौर पर कही जा रही है, आपको ये दर्शाने के लिए कि साहब आप बहुत बड़े गुलाम हो दुनिया के। ये बात समझ में आई?

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org