उस खास नौकरी की चाहत

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम। जीवन में आगे बढ़ने के लिए मन बहुत कुछ पाना चाहता है; मूलतः इसमें आर्थिक लाभ भी छुपा होता है। लेकिन पाँच-छह महीने कुछ करा और फिर कुछ और करने को मन चाहता है। मन को समझने का प्रयास किया, आप के कुछ वीडियोज़ (चलचित्र) देखे। एक वीडियो में आपने कहा कि मन को ऐसे जाना जाए कि क्या कह रहा है उसे पहचान लिया जाए और कौन कह रहा है उसको जान लिया जाए। ये चीज़ थोड़ी क्लियर (स्पष्ट) नहीं हुई।

आचार्य प्रशांत: तुम यह छोड़ो कि उस वीडियो में क्या देखा। तुम्हारी समस्या क्या है यह बताओ?

प्र: मन विचलित रहता है, उसको...

आचार्य: सबका रहता है, कुछ आगे थोड़ा बढ़ कर बताओ।

प्र: तो उसको काबू में करने या समझने की कोशिश की। मन और जो मैं हूँ उसमें पृथक्करण नहीं हो पा रहा।

आचार्य: क्या करोगे? किसने बता दिया कि पृथक्करण करना होता है? क्यों करना चाहते हो?

प्र: ताकि मन को समझ सकूँ।

आचार्य: क्या कह रहा है मन? समझने का उसमें क्या है, जो तुम्हारी कामनाएँ हैं वह सामने तो खड़ी हैं, उसमें समझना क्या है तुम्हें? मन माने इच्छा, और कुछ नहीं। क्यों जटिल कर रहे हो बात को? कुछ चाहते हो?

प्र: संसार में जो भी ऊँचे-से-ऊँचा है उसको पा लेना, ताकि...

आचार्य: जैसे क्या? माउंट एवरेस्ट?

प्र: जैसे कोई एग्जाम (परीक्षा) क्रैक करना, सिविल-सर्विस की तैयारी करना...

आचार्य: क्यों?

प्र: कहीं-न-कहीं एक छिपा रहता है कि शायद कोई पावर (ताक़त) मिले, कुछ करूँ...

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org