उसके लिए प्राण भी जाएँ, तो कोई बात नहीं

कथा: पम्पा सरोवर में नहाते समय राम और लक्ष्मण ने सरोवर के तट की मिट्टी में धनुष गाड़ दिए। स्नान करके लक्ष्मण ने धनुष निकलते हुए देखा, धनुष में ख़ून लगा हुआ था। राम ने देखकर कहा, “भाई, जान पड़ता है कि कोई जीव पर हिंसा हो गई है!” लक्ष्मण ने मिट्टी खोदकर देखा तो एक बड़ा मेंढक था, वह मरणासन्न हो गया था। राम ने करुणापूर्वक कहा, “तुमने आवाज़ क्यों नहीं दी? हम लोग तुम्हें बचा लेते। जब साँप पकड़ता है, तब तो ख़ूब चिल्लाते हो।” तो मेंढक ने कहा, “राम, जब साँप पकड़ता है तब मैं चिल्लाता हूँ — ‘राम, रक्षा करो! राम, रक्षा करो!’ पर अब देखता हूँ राम स्वयं मुझे मार रहे हैं, इसलिए मुझे चुपचाप रह जाना पड़ा।”

प्रश्नकर्ता: सांसारिक दुःख कैसा? आध्यात्मिक दुःख कैसा? दोनों में से कौनसा दुःख शुभ है?

आचार्य प्रशांत: दो तरह के दुःख होते हैं — एक जो संसार देता है, एक जो सत्य देता है। जब संसार दुःख दे तो बलपूर्वक विरोध करो, बुलाओ सत्य को, “आओ, रक्षा करो! आओ, रक्षा करो।” लेकिन जब सत्य ही दुःख दे, तो चुप रह जाओ बिलकुल। और सत्य ख़ूब दुःख देता है। राम की तरफ़ चलोगे, राम ख़ूब दुःख देंगे।

जब दुःख राम से मिल रहा हो, तो शोर नहीं मचाना चाहिए। जब दुःख संसार से मिल रहा हो, तो प्रतिकार करना चाहिए।

और जब दुःख सीधे-सीधे सच से ही मिल रहा हो, राम से ही मिल रहा हो, तो शिरोधार्य है। तब कहो, “ठीक है। आपने दिया है तो ठीक होगा। दुनिया देती तो हम बर्दाश्त नहीं करते, पर आप दुःख दे रहे हैं तो बिलकुल ठीक होगा।”

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org