उसकी दरियादिली, हमारी तंगदिली
कह रविदास खलास चमारा,
जो हम सहरी सु मीतु हमारा।
~ संत रविदास
शब्दार्थ — संत रविदास जी कह रहे हैं कि मैं चर्मकार हूँ और जो भी स्वयं को ऐसा ही समझेगा, केवल वही हमारा मित्र हो सकता है।
जब संत रविदास जी कहते हैं कि “मैं चर्मकार हूँ और जो कोई मेरे जैसा हो वही निकट आए, वहीं हमारा मित्र हो पाएगा” तो वो कह रहें हैं कि “जिसमें ज्ञान को लेकर के अभिमान हो, जिसमें बड़ी पंडिताई भरी हुई हो, वो सत्य कि तरफ हमारे साथ नहीं बढ़ पाएगा। जिसमें विनम्रता हो, जो सबसे नीचे बैठने को तैयार हो, जो सबसे पीछे चलने को तैयार हो, वो पहुँचता है वहाँ”।
वर्ण व्यवस्था या सामाजिक जाति से अभिप्राय नहीं है रविदास जी का। विनम्रता की तरफ इशारा है। अपने सारे दोषों को ईमानदारी से स्वीकार करने का आग्रह है और यह किसी संत की ही बात हो सकती है। आम आदमी बड़ा घबराता है अपने दोषों को स्वीकार करने से।
देख रहे हो ना उल्टी चाल — आम आदमी यही दर्शाता है कि वो प्रभु के समर्थन में खड़ा है, वो दिखाएगा कि जैसे वो और परमात्मा एक ही पालें में हो, वो दिखाएगा कि जैसे वो कितना समर्पित है, कितना विनीत है, कितना भक्त है, सत्य का कितना आज्ञाकारी है। जबकि तथ्य ये है कि वो सत्य के घोर विरोध में होता है, उसके घोर विरोध का प्रमाण उसका जीवन है। जो वास्तव में सत्य का विरोध कर रहा है वो लगातार यही प्रचारित करता रहता है; दूसरों को भी बताता है, स्वयं को भी बताता है कि हम तो बड़े भक्त हैं, बड़े समर्पित है और जो वास्तव में समर्पित है उसे साफ…