उलझे सम्बन्धों को कैसे सुलझाएँ?
आप का होना और सम्बन्ध का होना, एक ही बात है। आपके मन की जो गुणवत्ता है, ठीक वही गुणवत्ता आपके सम्बन्धों की होगी। मन और सम्बन्ध में कोई अंतर है ही नहीं। सम्बन्धों का ही नाम ‘मन’ है। मन की गुणवत्ता ही सम्बन्धों की गुणवत्ता है। अगर आप ये पाते हों कि दुनिया भर से सम्बन्ध नकली हैं, सतही हैं, द्वेष बहुत है उनमें, तो बस समझ लीजिएगा कि मन ऐसा ही है — सतही। गहराई नहीं है उसमें।