उपलब्धियाँ न प्राप्त कर पाने का दुःख
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मेरे जीवन में कोई उपलब्धि नहीं है। बड़ा दुःख है, कैसे बाहर निकलूँ? मेहनत ख़ूब करी है लेकिन नतीजे नहीं मिले। पढ़ाई को भी पूरी ज़िंदगी बहुत महत्व दिया, लेकिन घर वालों ने हमेशा सुनाया ही है। फ़िलहाल मेरी उम्र 32 वर्ष की है।
आचार्य प्रशांत: तुम्हें तकलीफ़ ये है कि तुम्हारा जीवन उपलब्धियों से ख़ाली है, या ये है कि दूसरों के पास उपलब्धियाँ बहुत हैं? तत्काल जवाब मत देना, थोड़ा ग़ौर करना। तुमको बिल्कुल पता ना होता उपलब्धि की धारणा, उपलब्धि के कॉन्सेप्ट के बारे में, तो क्या तब भी तुम तकलीफ़ में जीते? तुम कहीं ऐसी जगशून्य, निर्जन जगह पर रह रहे होते जहाँ किसी ने तुम्हें पढ़ाया ही नहीं होता कि “जीवन का अर्थ है उपलब्धि हासिल करना,” तो भी क्या तुम्हें कोई तकलीफ़ होती?
अभी तुम्हें तकलीफ़ ये नहीं है कि तुम्हें उपलब्धि नहीं मिली क्योंकि सर्वप्रथम उपलब्धि का आत्मा से, तुम्हारे हृदय से कोई ताल्लुक़ होता ही नहीं। अभी तुम्हारी तकलीफ़ ये है कि तुम्हें बता दिया गया है कि जीवन एक दौड़ है, तुम्हें भी दौड़ना है। तुम दौड़ पड़े हो, और तुम पा रहे हो कि दूसरे ज़्यादा तेज़ी से दौड़ गए। ये तुम ग़ौर कर ही नहीं रहे हो कि दौड़ना चाहिए भी था कि नहीं। इस मूल प्रश्न पर तुम आ ही नहीं रहे। ये तुम्हारा भोंदूपन है, कह सकते हो कि भोलापन है। जिन्होंने तुम्हें बताया होगा कि, “चल पठ्ठे दौड़ लगा,” वो सब तुम्हारे प्रियजन-स्वजन रहे होंगे, तो तुमने अपने भोलेपन में उनपर विश्वास कर लिया। तुमने ये कभी जाँचने की ज़रूरत ही नहीं समझी कि — दौड़ना आवश्यक भी है क्या?