उनसे प्यार करने की हिम्मत है तुममें?
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम! मेरा प्रश्न वृत्तियों के ऊपर है। गौतम बुद्ध कहते हैं कि वृत्तियों को बिना राग और द्वेष जगाए होशपूर्वक देखने मात्र से वृत्तियाँ क्षीण हो जाती हैं। परंतु मैं कितना भी प्रयास कर लूँ तब भी राग और द्वेष से निर्लिप्त नहीं हो पाता। इसका कारण खोजता हूँ तो पता हूँ कि इनसे जो मज़ा मिलता है, प्लेज़र मिलता है उन्हीं के पीछे ज़्यादा खिंचाव रहता है। ऊपर-ऊपर से तो मैं गौतम बुद्ध से प्रेम की बात करता हूँ लेकिन गहराई में मैं प्लेज़र को ज़्यादा महत्व दे रहा हूँ। मैं ऐसा क्या करूँ कि बुद्ध के प्रति मेरा प्रेम गहरा हो जाए?
आचार्य प्रशांत: ज़बरदस्ती नहीं किया जाता प्रेम। प्रेम की शुरुआत हमेशा कष्ट और तड़प से होती है। वो नहीं है तो प्रेम हो ही नहीं सकता। अब तुम पूछो कि गौतम बुद्ध से प्रेम कैसे करूँ? क्यों करना है प्रेम? कोई नियम है? कोई अनिवार्यता है क्या कि गौतम बुद्ध से प्रेम करना ही करना है? मत करो भैया!
ये प्रश्न ही क्यों है कि गौतम बुद्ध से प्रेम करना है? कोई कारण बताओ न? कारण हमेशा एक ही होता है- अपनी परेशानी। मैं दुःख में हूँ और देखता हूँ किसी बुद्ध की तरफ तो आस बंधती है कि दुःख से मुक्ति संभव है।
तो वास्तव में आप जब किसी बुद्ध की ओर आकर्षित होते हैं तो आप अपनी मुक्ति की ओर, अपने दुःख से मुक्ति की ओर आकर्षित होते हैं। उस आकर्षण के लिए, उस प्रेम के लिए सर्वप्रथम क्या चाहिए? अपने दुःख का एहसास। अपनी तड़प के प्रति संवेदना। वो होगी तो खुद खिंचोगे बुद्ध की ओर।