उदासी और दु:ख से मुक्ति कैसे हो?

ह्रदय में उदासी उठती है, उठनी चाहिए। जीव पैदा हुए हैं न हम। और अकेले नहीं पैदा हुए हैं। इंसान को तो पैदा होने के लिए भी दो चाहिए। इंसान जब भी होगा, अपने आस-पास और इंसानों को पाएगा। एक कुटुंब हैं हम, एक कुनबा हैं हम। और जितने हैं हमारे आसपास, सब हमारे ही जैसे हैं।

दो बातें कहीं हमने। पहला, हम अकेले नहीं; दूसरा, जितने भी हमारे आस-पास हैं, सब हमारे ही जैसे हैं। देखिए मृत्यु को, और देखिए कि आप ही भर नहीं डरी हुईं और उदास हैं, आप ही को नहीं कचोट गई, आप ही को नहीं बेध गई, यह पूरी दुनिया जी ही रही है मृत्यु के दुःख और डर में।

इस डर को अपनी ऊर्जा बना लीजिए, इस गहरी उदासी को अपनी प्रेरणा बना लीजिए। मत कहिए कि मेरे भीतर से उदासी मिट जाए। वही उदासी जब दूसरों का भला करने के काम आती है, तो करुणा कहलाती है। कृष्ण करुण हैं, बुद्ध करुण हैं। और बुद्ध का करुण चेहरा आप देखेंगे तो उसमें आप हँसी नहीं पाएँगे। बुद्ध को दुनिया का दुःख सताता है, और यह बात मैं बड़ी सावधानी से बोल रहा हूँ, क्योंकि मुझे मालूम है कि बुद्ध वो हैं जो हर प्रकार के दुःख के पार निकल गए हैं।

बुद्ध हर प्रकार के दुःख के पार निकाल गए हैं, यह जानते हुए भी कह रहा हूँ कि बुद्ध को दुनिया का दुःख सताता है। इसीलिए जब बुद्ध ने अपने आर्ष वचन बोले, तो उसमें से पहला था: “जीवन दुःख है”। दुःख यदि होता ही नहीं तो वे भी तो किसी ऊँचे शिखर पर चढ़ करके इनकार कर सकते थे न? और बहुत यहाँ पर घूम रहे हैं ब्रह्म-ज्ञानी, वो कहते हैं, “कोई दुःख है ही नहीं, बेटा। दुःख माया है, दुःख मिथ्या है।”

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org