उत्कृष्टता ही जीवन का ऐश्वर्य है

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आपने ‘ऐश्वर्य’ शब्द के बारे में मुझे थोड़ा-सा कहा था कि जीवन में ऐश्वर्य होना चाहिए और जब मैंने ये आध्यात्मिक ग्रंथ घर पर और यहाँ पर भी अध्ययन किया, उसमें ‘ऐश्वर्य’ शब्द है। और उस वक़्त आपने मुझे जीवन को संगीत में उतारने को भी कहा था, ‘संगीत जीवन में लाओ’, ऐसा आपने बोला था। आपने बताया था वीडियो में कि ऐश्वर्य शब्द ईश्वर से आया है, पर जब मैं ऐश्वर्य शब्द के बारे में सोचता हूँ तो वो संगीत के अलावा ज़्यादातर प्राकृतिक या भौतिक ही होता है। तो मैं यह जो ऐश्वर्य शब्द है, उसको पूरी तरह से समझ नहीं पा रहा हूँ।

आचार्य प्रशांत: ईश्वर से ही आया है ऐश्वर्य शब्द। सांसारिक तौर पर जिस तरह से इसका इस्तेमाल हो जाता है, अध्यात्म में वैसा नहीं है ऐश्वर्य। संसार में तो जब ऐश्वर्य कह देते हो तो वह सुनाई देता है करीब-करीब अय्याशी जैसा, मौज, मज़े, भोग। ऐश्वर्य से इन सब शब्दों का कुछ संबंध लगता है, है न? नहीं? अध्यात्म में जब ऐश्वर्य कहा जाता है तो उसका अर्थ होता है – ऊँचाई, विभुता। विभूति योग है न गीता में। ऊँचाई, विभुता—वही ऐश्वर्य है। जीवन में, चेतना में जो कुछ भी ऊँचे-से-ऊँचा हासिल हो सकता हो, उसको ऐश्वर्य कहते हैं।

तो श्रीकृष्ण कहते हैं कि "शस्त्रधारियों में मैं राम हूँ", तो राम होना शस्त्रधारियों का ऐश्वर्य हुआ। "पक्षियों में मैं गरुड़ हूँ", तो गरुड़ होना पक्षियों का ऐश्वर्य हुआ। वो उच्चतम है, जो उन्हें हासिल हो सकता है। यह इशारों में बात हो रही है, ऐसा नहीं है कि हम कह रहे हैं कि छोटी गौरैया को बड़ा बाज़ बन जाना चाहिए।

तुम्हारी चेतना की जो भी उच्चतम स्थिति तुम्हें संभव है, तुम उसे पाओ—यही जीवन का ऐश्वर्य है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org