उठो, अपनी हालत के खिलाफ़ विद्रोह करो!

तमसा का अर्थ होता है न सिर्फ आप एक गर्हित दशा में हैं, अपितु आपको उस दशा से अब कोई शिकायत भी नहीं रह गई है।

दो स्थितियाँ हो सकती हैं जहाँ पर आप बदलाव न चाहते हों।

पहली यह कि बुद्धत्व घटित ही हो गया, मंज़िल मिल गई, अब कहाँ जाना है? तो अब बदलाव का कोई सवाल नहीं पैदा होता है।

दूसरा यह कि नशा इतना गहरा है और आलस इतना है और अज्ञान इतना है कि आपको आपकी गई-गुजरी स्थिति पता भी नहीं लगती और पता यदि लग भी जाती है तो परेशान नहीं करती। आप गलत जगह बैठ गए हो और जमकर बैठ गए हो। अब आलस ने पकड़ लिया है आपको और आप कह रहे हैं कि ठीक है, अब क्या करें? कल की कल देखेंगे।

यह किसी संतत्व का सबूत नहीं है, या यह मत सोच लीजिएगा कि यह व्यक्ति अब निष्काम कर्म करता है।

हम जैसे लोग हैं हमें संतुष्टि नहीं गहरी असंतुष्टि चाहिए, संतोष हमारे लिए ठीक नहीं है। हमारे भीतर तो बेचैनी होनी चाहिए, असंतोष होना चाहिए।

हमें व्याकुल होना चाहिए कि कैसी हालत में हैं, हमें छटपटाहट होनी चाहिए। हमारे चेहरे पर आपातकाल के लक्ष्ण होने चाहिए, हमारे चेहरे वैसे होने चाहिए जैसे पानी में डूबते हुए इंसान के होते है, हमारे चेहरे पर शांति और संतोष शोभा नहीं देते, हमारे चेहरों पर तो अकुलाहट चाहिए।

बुद्ध की शांति वास्तविक शांति है और एक तमोगुणी की शांति उसके नर्क को बरकरार रखती है।

हमें लज्जित होना चाहिए, हमें तो लगातार प्रेरित होना चाहिए।

उठो और विद्रोह करो, जंजीरें तोड़ो।

आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org