उचित विचार कौन सा?

गुरु कीजै जानि के, पानी पीजै छानि |

बिना विचारे गुरु करे, परै चौरासी खानि ||

संत कबीर

वक्ता (प्रश्न पढ़ते हुए) : प्रिया पूछ रहीं हैं कि मेरे लिये तो अद्वैत आना भी मात्र एक संयोग था| अपने करे गुरु कहाँ मिलता है? संयोग से ही मिल जाये तो मिलता है| क्यों कबीर कह रहे हैं कि गुरु का चुनाव करो? क्यों कह रहे हैं कि गुरु करे ‘छानि के’? क्यों कह रहे हैं कि बिना विचारे गुरु करे तो ‘परै चौरासी खानि’? विचार शब्द से थोड़ी असुविधा हो रही है कि क्यों कहा गुरु विचार करके करो?

वक्ता: जब कबीर कहते हैं ‘विचारो’, तो वह ‘कबीर’ कह रहे है ना कि विचारो| वो कबीर जैसा ही विचार है फिर| वो ‘कुविचार’ नही हो सकता, वो ‘सुविचार’ है| यही नहीं देखना होता है कि क्या कहा; उससे कहीं महत्वपूर्ण होता है किसने कहा? कौन कह रहा है? जब कबीर कहे विचार, तो उसका अर्थ संसार का अनर्थक, अनर्गल विचार नहीं है| जब कबीर कहे विचार तो उसका अर्थ है ‘आत्म-विचार’| जब कबीर कहते है ‘पंडित करो विचार’ या ‘साधु करो विचार’ और लगातार कहते है, कई बार कहते है, कि विचार करो| तो वो ये नहीं कह रहे हैं कि इधर-उधर की घटनाओं का विचार करो या मिथ्या पंच का विचार करो, उलझे रहो उसी में|

कबीर का विचार ना कोई उलझन है ना भटकाव है| उसमें आकर्षण-विकर्षण दुनिया भर के तमाम खेल ये सब नहीं हैं| आत्म-विचार ही सुविचार है| जब कबीर कहते है कि बिना विचारे गुरु करे, तो धोखा मत खा जाइयेगा| वो यह नहीं कह रहे हैं कि ‘गुरु के विषय’ मे विचार करो| वो कह रहे हैं ‘अपने बारे मे विचार करो’| तुम अपने आप को देखो…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org