Sitemap

उचित कर्म कौन सा है?

Press enter or click to view image in full size

कहता हूँ कहि जात हूँ, देता हूँ हेला।
गुरु की करनी गुरु जाने, चेले की चेला।।
~ संत कबीर

आचार्य प्रशांत: दो तरह की करनी हैं। मूल पर जाइए। तीन शब्द हैं इसमें जो महत्वपूर्ण हैं: करनी, गुरु और चेला। करनी, गुरु और चेला, मतलब करनी दो अलग-अलग जगहों से आ सकती है।

कहता हूँ कहि जात हूँ, देता हूँ हेला।

गुरु की करनी गुरु जाने, चेले की करनी चेला।।

करनी के दो अलग-अलग स्रोत — गुरु और चेला।

अब ‘कृष्णमूर्ति’ की भाषा में देखें तो जो करनी गुरु से आती है वो एक्शन कहलाती है, और जो करनी चेले से आती है वो एक्टिविटी कहलाती है। कृष्ण की भाषा से देखें तो जो करनी गुरु से आती है वो कहलाती है ‘निष्काम कर्म’ और जो करनी चेले से आती है वो ‘सकाम कर्म’ कहलाती है। बस यही है।

कबीर साफ़-साफ़ कह रहे हैं कि इन दोनों तरह की करनीयों में ज़मीन-आसमान का अंतर रहेगा। अगर स्थूल है दृष्टि, ठीक से देख नहीं पा रहे हो, तो ऐसा ही दिखाई देगा जैसे सिर्फ़ कर्म हो रहा है। पर गुरु से जो कर्म होता है उसमें गुरु कर्ता है और चेला कर्ता दिखते हुए भी अकर्ता होता है। यदि कर्म का उद्गम गुरु से है — ‘गुरु’ को यहाँ मैं किस अर्थ में कह रहा हूँ?

प्रश्नकर्ता: आत्मा।

आचार्य: यदि कर्म का उद्गम गुरु से है तो उसमें दिखाई तो यही पड़ेगा कि कर कौन रहा है?

प्र: चेला।

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

No responses yet