ईमानदारी और सफलता साथ-साथ नहीं चलते?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम, आपसे जो भी सत्संग सुना है उसमें ईमानदारी शब्द बार-बार दोहराया गया है। मेरी जिज्ञासा ये है कि जीवन में ईमानदारी और सफलता दोनों को एक साथ कैसे साझा जा सकता है?

आचार्य प्रशांत: पहले ईमानदारी से ये पता तो करो और मानो तो कि सफलता क्या है।

जब आप पूछ रहे हैं कि जीवन में कैसे ईमानदारी भी रहे और सफलता भी रहे तो निश्चित रूप से आपके सामने कुछ उदाहरण हैं जहाँ आपको लगता है कि बेईमानी भी है और सफलता भी है। निश्चित रूप से आपको लगता है कि बेईमानी और सफलता शायद ज़्यादा साथ-साथ चलते हैं तो इसलिए फिर आप मुझसे पूछ रही हैं कि, "कैसे करें कि ईमानदारी के साथ सफलता मिल जाए?"

ईमानदारी के साथ सफलता की बात बाद में आएगी। पहले तो ये बताइए न कि जिन्होंने बेईमानी से सफलता पाई उन्होंने क्या वास्तव में सफलता पाई? ईमानदारी अगर नहीं है तो ये भी कैसे पता चलेगा कि सफलता असली है?

ईमानदारी का मतलब होता है तथ्यता, सत्यता। किसी भी मुद्दे के यथार्थ को जानने का झुकाव है ईमानदारी। तो सफलता भी एक मुद्दा है न? बहुत आसान है यूँ ही झूठ-मूठ खुद से ही फरेब करके अपने-आपको सफल घोषित कर देना, दुनिया को बेवकूफ बना देना, कह देना सफल हो गए, और वही पट्टी जो दुनिया को पढ़ाई वो खुद को भी पढ़ा देना, खुद को भी घोषित कर देना कि, "हम तो सफल हैं!" पर वास्तव में सफल हो क्या?

जिसने अपने सब कामों को, कामों के परिणामों को बिना लाग-लपेट के, बिना मिलावट के, साफ-साफ देखने का हौसला इकट्ठा कर लिया उसे पहली चीज़ यही दिखाई देती है कि काम बहुत किए, मेहनत बहुत करी, जान बहुत लगाई, ज़ोर-तोड़ खूब किए, धोखे भी खूब दिए, दूसरों को भी स्वयं को भी लेकिन वो तो हाँसिल हुआ नहीं जो वास्तव में चाहिए था और अगर वो हाँसिल हुआ ही नहीं जो वास्तव में चाहिए था तो सफल कहाँ हो गए?

एक-से-एक बड़े बेईमान बैठे हैं जो दूर से देखो, सामाजिक दृष्टि से देखो तो बड़े सफल नजर आते हैं पर क्या वास्तव में उनको भी वो उपलब्ध हुआ है जो उन्हें चाहिए? उत्तर पाने के लिए एक सहारा दिए देता हूँ; अगर वो मिल गया होता जो वास्तव में चाहिए तो बेईमानी छूट जाती।

बेईमानी पूर्वक अभी भी यत्न करके, जोड़-तोड़ करके कुछ-न-कुछ पाने की ही कोशिश में लगे हो तो सारी बेईमानी भी निर्थक ही गई है आज तक। पर ये बात वो स्वीकारेंगे नहीं, वो एक मुखौटा पहने रहते हैं, एक सफल और सुखी व्यक्तित्व का। उनको देख देख करके आम जनता भी भ्रमित रहती है, लगता है कि अगर इन्होंने एक झूठा जीवन जी करके सुख और सफलता पा ली है तो हमें भी वही राह पकड़नी चाहिए।

और आप उनके पास जा करके उनसे बहुत ज़ोर दे करके या विनती करके भी पूछेंगे कि, "क्या वास्तव में सफल हैं आप?" तो भी वो आपको हकीकत तो बताएँगे नहीं। क्यों?

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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