इसे कहते हैं असली जवानी
किताबी ज्ञान देने वाले तो हमेशा से बहुत रहे हैं। स्वामी विवेकानंद अनूठे हैं, उस आदर्श से जो उन्होनें जी कर प्रस्तुत किया। बहुत कम तुमने साधू-संत, सन्यासी देखे होंगें, जो इतने सुगठित सुडौल शरीर के हों जितने विवेकानन्द थे। खेल की, कसरत की, उनकी दिनचर्या में बंधी हुई जगह थी और यही नहीं कि वो व्यक्तिगत रूप से खेलते थे, अपने साथियों से भी कहें- “व्यायाम आवश्यक है।”
इस बात को समझना सूक्ष्म है। एक ओर तो शरीर को बना कर रखना है…