इसी क्षण (Present moment) में रहने की बात
अगर आप कहीं से ये बात सुन रहे हैं कि इसी पल में रहना है, न आगे जाना है, न पीछे जाना है, तो वो बात निरर्थक है। जहाँ जाना हो जाइए, सब ठीक है जब तक डोर सही हाथों में है। आपको अतीत में जाना है जाइए, आपको भविष्य में जाना है जाइए, आपको यहाँ के बारे में सोचना है सोचिए, आपको कहीं और के बारे में सोचना है सोचिए, सही होकर सोचिए, सही जगह से सोचिए। आप कैसे अतीत को छोड़ देंगे, ये शरीर ही अतीत है।
अतीत भी रहेगा, भविष्य भी रहेगा, न अतीत की स्मृतियों में बुराई है, न भविष्य की सोच में बुराई है, श्रद्धा हीनता में बुराई है, केंद्र हीनता में बुराई है। अगर श्रद्धा युक्त हैं आप और भविष्य के बारे में सोच रहे हैं तो वो सिर्फ़ एक ख्याल होगा, उस ख्याल में एक डरा हुआ ‘मैं’ नहीं मौजूद होगा।
तटस्थ होके तीनों को देखिए, भूत, भविष्य और वर्तमान। तीनों काल की धारा के अंग हैं, आप तटस्थ रहिए। जो सत्य को समर्पित है, समय उसका क्या बिगाड़ लेगा? उसको क्या ख़ौफ़ लगेगा कि मैं तो अतीत के बारे में सोच रहा हूँ। आसक्ति बुरी है, भूत और भविष्य नहीं बुरे हैं। न आसक्ति भूत से है, न आसक्ति भविष्य से है और तो और हमें आसक्ति वर्तमान से भी नहीं है।
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