इतनी शोहरत इतनी कमाई, फिर भी उदासी और तन्हाई

सच्ची खुशी पाने का और कोई तरीका ही नहीं है। बस इसी भ्रम को छोड़ दो कि दुनिया की कोई गतिविधि, कोई विचार, कोई ओहदा, कोई व्यक्ति, कोई उपलब्धि, कोई सफलता, तुमको सच्ची खुशी दिला सकती है। हाँ, तुमको मन बहलाने के लिए छोटी-मोटी सावधिक खुशियाँ चाहिए हों जो आती हैं और गुज़र जाती हैं, और अपने पीछे बहुत सारा दर्द छोड़ जाती हैं, तो तुम दुनिया के फेर में फँसे रहो।

इसीलिए समझाने वालों ने तुमसे सदा कहा कि सुख की नहीं धर्म की राह चलो। सुख की राह कहती है, “वो सब करो जो करके खुशी मिलेगी”, ये भारत ने कभी नहीं सिखाया। दुनिया भर में जो जानने वाले हुए हैं उन्होंने ये कभी नहीं सिखाया कि वो सब काम करो जो करके खुशी मिलती है। ये आजकल कुछ लोग सिखा रहे हैं क्योंकि इसी तरह की बातों का बाज़ार बड़ा गरम है।

दुनिया के किसी जानने वाले ने कभी तुमसे नहीं कहा कि अपने सुख की राह चलो, उन्होंने तुमसे कहा, “धर्म की राह चलो”, और धर्म का मतलब होता है जो सही है वो करना ही है, कौन इस पचड़े में पड़े कि इससे सुख मिलता है कि दुख। मज़ेदार बात समझो, एक बार तुमने इस बात पर ध्यान देना बंद कर दिया कि सुख मिल रहा है या दुख, उसके बाद न सुख मिलता है न दुख, उसके बाद वो मिलता है जिसे तुम सच्ची खुशी कह रहे हो, समझने वाले जिसे आनंद कहते हैं।

सुख-दुख तुम्हें प्रभावित ही तब करते हैं, सुख-दुःख तुम्हारे लिए कीमती ही तब हो जाते हैं, जब तुम सुख-दुःख की खातिर काम करो। जब तुम धर्म की खातिर काम करते हो, धर्म से मेरा आशय कोई हिन्दू धर्म या इस्लाम या ईसाईयत, इनसे नहीं है। धर्म से बस ये समझ लो वो जो सही है, सच्चा कर्तव्य, उसको मैं धर्म कह रहा हूँ।

जब तुम धर्म की खातिर काम करते हो, तब तुम कहते हो कि भाई इसलिए थोड़े ही कर रहे हैं कि इससे बड़ी खुशी मिल जाएगी, इसलिए कर रहे हैं क्योंकि ये तो मुझे करना ही है, और जो करना ही है वो इतना आवश्यक है और इतना तात्कालिक है, इतना, इतना आकस्मिक, इतना, इतना इमर्जेंट है कि ये सोचने की हमें फुर्सत कहाँ कि इससे सुख मिल रहा है कि दुख मिल रहा है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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