इतनी कामवासना प्रकृति नहीं, समाज सिखाता है
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मैंने अपने मन को बहुत टटोला और पाया कि मेरा मन डरा हुआ है और अपने आपको हीनता भरी निगाहों से देखता है। मुझे इतना जिस चीज़ ने गिराया है वो है मेरी कामुकता। इस कामुकता ने मुझसे बहुत गलत काम करवाए हैं जिससे मैं अपने आपको बहुत हीन महसूस करता हूँ पर जब से मैं इस शिविर में आया हूँ मुझ पर ये काम हावी नहीं हो रहा है और मैं अच्छे से जी रहा हूँ। अन्यथा तो मुझे यही लगता रहता है कि मैंने इतना गलत कुछ किया…