इच्छा क्या है?

कस्यापि तात धन्यस्य लोकचेष्टावलोकनात्।

जीवितेच्छा बुभुक्षा च बुभुत्सोपशमं गताः॥९- २॥

~ अष्टावक्र गीता

हे पुत्र! इस संसार की (व्यर्थ) चेष्टा को देखकर किसी धन्य पुरुष की ही जीने की इच्छा, भोगों के उपभोग की इच्छा और भोजन की इच्छा शांत हो पाती है।

आचार्य प्रशांत: इच्छा को शांत करना कोई उद्देश्य हो भी नहीं सकता। शुरुआत यहाँ से हो ही ना कि यह इच्छा शांत हो जाये, वह इच्छा शांत हो जाये। शुरुआत अनुसन्धान से होगी। देखिए, इस बात को थोड़ा समझिएगा, ध्यान दीजिएगा। कहीं कुछ ऐसा हो जो बेचैनी दे रहा हो, जो कष्ट दे रहा हो, इस पर दो तरीके से आगे बढ़ा जा सकता है। पहला यह है — जो हो रहा है, गलत हो रहा है, इसको खत्म करना है, और तुरंत मैं खत्म करने की दिशा में कूदने लग जाता हूँ। ठीक है? इस दुनिया में लड़ाई बहुत है, मुझे लड़ाई खत्म कर देनी है, शांति चाहिये।

दिल्ली महिलाओं के लिए बड़ी असुरक्षित हो गयी है, दिल्ली को सुरक्षित शहर बनाना है। जो हो रहा है, गलत है, उसे ठीक करना है। और यह बड़ा आसान है कि तुरंत ही एक समाधान को लागू करने निकल पड़ना। एक दूसरा तरीका भी होता है, जब समस्या सामने आये, जब कुछ बेचैन करने वाला सामने आये तो दूसरा तरीका क्या होता है? कि मुझे यह जानना है कि यह सब है क्या? इससे पहले कि मैं विश्व-शांति का मसीहा बनने की कोशिश करूँ, इससे पहले कि मैं एक संस्था ही बना दूँ जो इसीलिए काम करती है कि चारों तरफ शांति हो सके, मैं पहले यह जानू तो सही कि युद्ध आता कहाँ से है? इससे पहले कि मैं एक आंदोलन शुरु कर दूँ।

अब दाढ़ी साफ करने के औजार बनाने वाली एक कंपनी है, उसने एक अभियान शुरू किया है कि मैं एक सिपाही हूँ और मैं महिलाओं की रक्षा करूंगा। ठीक है? अब यह समझ भी नहीं रहे हैं कि…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org