इच्छा क्या है?

कस्यापि तात धन्यस्य लोकचेष्टावलोकनात्।

जीवितेच्छा बुभुक्षा च बुभुत्सोपशमं गताः॥९- २॥

~ अष्टावक्र गीता

हे पुत्र! इस संसार की (व्यर्थ) चेष्टा को देखकर किसी धन्य पुरुष की ही जीने की इच्छा, भोगों के उपभोग की इच्छा और भोजन की इच्छा शांत हो पाती है।

आचार्य प्रशांत: इच्छा को शांत करना कोई उद्देश्य हो भी नहीं सकता। शुरुआत यहाँ से हो ही ना कि यह इच्छा शांत हो जाये, वह इच्छा शांत हो जाये। शुरुआत अनुसन्धान से होगी। देखिए, इस बात को थोड़ा समझिएगा, ध्यान दीजिएगा। कहीं कुछ ऐसा हो जो बेचैनी दे रहा हो, जो कष्ट दे रहा हो, इस पर दो तरीके से आगे…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org