इच्छा और डर का सही इस्तेमाल

इच्छा और डर का हमको उपयोग करना पड़ेगा। तो क्या इच्छा करें? इच्छा से मुक्ति मिले। क्या डर रहे? मुक्ति ना मिली तो?

अगर ये आपके लिए संभव होता कि आप तत्काल इधर इच्छा फेक दो और ऐसे इधर डर फेक दो तो मैं कहता कि इससे तो बढ़िया कुछ हो ही नहीं सकता। पर ऐसा तो हम कर ही नहीं पाते न। फिर हमारे लिए यही रास्ता है कि इच्छा को सदगति दो और डर का सदुपयोग करो। सही डर रखो। फ़िजूल के डरों को छोड़ो। महाडर जो है, उसकी खबर लो।

जो सबसे खतरनाक और डरावनी घटना हमारे साथ घट रही है वो ये है कि जीवन बर्बाद हो रहा है। संभव थी जीवन में मुक्ति और उससे चुके जा रहे हैं।

अगर इच्छा करनी ही है तो बड़ी इच्छा करो ना। बड़ी माने ऊँची इच्छा। आयामगत श्रेष्टता हो सकती है क्या इच्छाओं में? बड़ी सूक्ष्म और बड़ी लाजवाब इच्छा है मुमुक्षा। तो इच्छा और डर का सदुपयोग करें।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org