इक ज़रा सी बात याद रखो

प्रश्नकर्ता: क्या याद रखना ज़रूरी है?

आचार्य प्रशांत: सब भूल जाइए, एकदम भूल जाइए।

जो न्यूनतम हो,

बस उसे याद रखिए।

बहुत सारा जो याद रखे हुए हैं, समझ लीजिए वो सब कुछ भूले हुए हैं।
जो जितना ज़्यादा याद रख रहा है, वो उतना ज़्यादा भूला हुआ है।

जिसके पास याद रखने को पूरा एक भण्डार है – ‘क’ से लेकर ‘ज्ञ’ तक, ‘ए’ से लेकर ‘ज़ेड’ तक – जिसके पास याद रखने को पूरा एक भण्डार है, अखिल संसार है, समझ लो उसे कुछ भी याद नहीं।

(तीन दिवसीय शिविर में होने वाले प्रवचन, व शास्त्रों व संतों के वचनों के अध्ययन का उल्लेख करते हुए)

और यहाँ तो तीन दिन में बहुत सारी बातें हुईं। कैसे याद रख लेंगे आप? मैं आपको इतनी आश्वस्ति दे देता हूँ कि जितनी बातें हुईं, ये मुझे तो याद नहीं रहेंगी। उसमें से मुझे कुछ भी याद नहीं रहेगा। तो मेरी सलाह क्या है आपको? न्यूनतम को याद रखिए।

जिसने ‘उसको’ याद रख लिया जो छोटे-से-छोटा है, वो सबकुछ याद रख लेगा। वो जो छोटे-से-छोटा है न,

वो महल की चाबी की तरह है।

चाबी कितनी बड़ी होती है?

छोटी।

महल कितना बड़ा होता है?

बहुत बड़ा।

चाबी है तो महल है।

वो जो छोटे-से-छोटा है, उसे याद कर लीजिए। उसके माध्यम से पूरा महल आपका है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org