इंसान
इंसान,
लगता है बहुत आक्रामक होते जा रहे हो तुम,
गिद्ध सी तुम्हारी पैनी नज़र
तेंदुए सा तुम्हारा हमला,
सिंह सा प्रहार,
अपराजेय तुम,
शक्तिशाली, सामर्थ्यवान।
सिद्धांत?
मात्र दो:
सफलता का कारक बहुधा अविश्लेषित रहता है।
प्रहार करे जो प्रथम, सफल भी बहुधा वही रहता है।
अतः हे प्रहारक,
सर्वसामर्थ्यशाली जीव,
प्रणाम।
प्रहार?
पर क्यों?
प्रहार?
पर किस पर?
आक्रामक?
पर आक्रमण की आवश्यकता क्यों?
रचनाकार की सृष्टि का प्रत्येक अंश शत्रु प्रतीत होता है तुम्हें?
कौनसा भाव है हृदय में, जो दृष्टि में सदा संदेह ही बसता है?
भय किसका है मन में?
कहीं उसका तो नहीं, जो है साक्षी तुम्हारे प्रत्येक कर्म का?
आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है।