इंजीनियरिंग की पढ़ाई, और मन में दुविधाएँ

प्रश्न: आचार्य जी, मै इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रहा हूँ। पढ़ने में अच्छा हूँ, अंक अच्छे आते हैं, पर पढ़ने में मन नहीं लगता क्योंकि पता ही नहीं है कि क्यों पढ़ रहा हूँ। अपने बारे में कुछ भी नहीं जानता, और दुनिया के बारे में जानने को मुझे कहा जा रहा है। समझ ही नहीं पाता कि क्या कर रहा हूँ और क्यों कर रहा हूँ।

कृपया मदद करें।

आचार्य प्रशांत: नहीं, ठीक कर रहे हो। दुनिया के बारे में अगर जान गए तो अपने बारे में बहुत दूर तक जान गए तुम। अविद्या का बहुत महत्त्व है। जिसको आप इंजीनियरिंग या व्यावसायिक शिक्षा कहते हैं, ये सब ‘अविद्या’ की श्रेणी में आती हैं। वास्तव में हमारे शिक्षण संस्थानों में जो भी पढ़ाया जा रहा है तो अधिकाँशतः अविद्या ही है। और उसका ख़ूब महत्त्व है। वो बेकार की चीज़ नहीं है।

अगर तुम ये जान लो कि तुम्हारे कार का इंजन कैसे काम करता है, तो तुम्हें मदद मिलेगी ये जान लेने में कि तुम्हारे दिमाग का इंजन कैसे काम करता है। दोनों में बहुत समानताएँ हैं। दोनों ख़ूब ईंधन पीते हैं, दोनों गर्म होते हैं, धुआँ मारते हैं; प्रक्रियाएँ भी दोनों की बहुत दूर-दूर की नहीं हैं।

इसी तरीक़े से, अगर तुम मेडिकल के छात्र हो, और तुम समझ ही लो कि मस्तिष्क कैसे काम करता है, कि पूरा जो ये स्नायु तंत्र है, और ये पूरी जो आंतरिक प्रणाली है, ये कैसे काम करती है, तो अपने बारे में बहुत सारे जो भ्रम हैं उनसे मुक्ति पा जाओगे।

इसी तरीक़े से चाहे गणित हो, चाहे समाज समाजशास्त्र हो, चाहे मनोविज्ञान हो, ये सब तुम्हें…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org