आसमान पाए बिना ज़मीनी मसले हल नहीं होते

सत्य पाने का क्या मतलब होता है? वो ऐसी कोई चीज़ थोड़ी है जो जंगल में मिल गई और जेब में रखली, और खेल खत्म। सत्य को पाने का मतलब ही यही होता है कि ज़िंदगी ठीक चलने लगती है, सब छोटे-बड़े निर्णय ठीक हो गए, जीवन की तमाम स्थितियों के प्रति तुम्हारी जो प्रतिक्रिया होती है वो ठीक हो गई, और कुछ नहीं है सत्य को पाना, यही है।

आसमान को पाए बिना ज़मीनी मसले हल नहीं होते और कितना पाया तुमने आसमान को, उसकी पहचान, उसका प्रमाण यही है कि तुम्हारे ज़मीनी मसले कितने सुलझे।

अध्यात्म कुछ-कुछ आयुर्वेद की तरह है, वहाँ तुम जाओ और बोलो कि मुझे यहाँ थोड़ी सी फुँसी हुई है, तो वो तुम्हें रक्त शोधक देते हैं। आसमान तुमने पाया नहीं इसीलिए ज़मीन पर दुःख भोग रहे हो, ज़मीन के मसलों को ज़मीन का ही मत समझ लेना।

गुस्सा न आए, ये माँगना कोई छोटी सी माँग है क्या? मसला तुमने ज़मीन का ही माँगा है, वास्तव में तुमने माँग लिया है, आसमान। गुस्सा आता रहेगा और जितनी बार गुस्सा आता रहेगा उतनी बार तुम्हें पता चलता रहेगा कि अनंत की ओर तुम्हारी यात्रा अधूरी है। बढ़े चलो, रुक मत जाना, जितनी बार गुस्सा आए, उतनी बार समझलो कि किसी ने तुम्हें संदेश भेजा है कि अभी यात्रा बाकी है। चीज़ महँगी है, यात्रा लंबी है, दूर तक जाना है, बहुत कुछ पाना है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org