आसपास दमदार-समझदार महिलाएँ दिखाई नहीं देतीं?

प्रश्न: आचार्य जी, आपका वीडियो देखकर साथी के चयन के प्रति कुछ स्पष्टता आई है, लेकिन इसे जीवन में व्यावहारिक तौर पर कैसे उतारूँ? कृपया मार्ग दिखाएँ।

आचार्य प्रशांत: अपने आसपास आप वही तो देखोगे ना जो आपने अपने आसपास इकट्ठा कर लिया है। आप किसी बाग़ में चले जाइए, अपने आसपास आप क्या पाओगे? पेड़-पौधे, फल-फूल, कलियाँ। अब ये पेड़-पौधे, फल-फूल, कलियाँ ज़बरदस्ती थोड़े ही आपके आसपास आ गए हैं। ये आपके आसपास इसलिए है क्योंकि आपने इनका चयन करा। आपने चुनाव करा कि आप ऐसी जगह जाओगे जहाँ आपके आसपास फल-फूल, पेड़-पौधे, कलियाँ इत्यादि होंगे, तो आपको अपने आसपास दिखाई दे रहे हैं। अब आप चुनो कि आपको बाग़ में जाना है, और बाग़ में जाने के बाद आप बोलो कि — “मुझे यहाँ पर लैपटॉप्स क्यों नहीं दिखाई दे रहे हैं, या हाईवे क्यों नहीं दिखाई दे रहा है, या फैक्ट्रियाँ क्यों नहीं दिखाई दे रही हैं?” तो मैं क्या कहूँगा? मैं कहूँगा, “भाई, वही तो दिखाई देगा ना जो तुमने देखने के लिए चुना है।”

इसी तरीक़े से आप चले जाइए मच्छी बाज़ार में, तो आपको वहाँ अपने आसपास क्या दिखाई देगा? मछलियाँ। अब मछलियाँ क्या कूद-कूद कर आईं हैं आपकी चेतना पर आक्रमण करने के लिए? क्या मछलियों ने निश्चय किया था, या क़सम खाई थी कि वो आज आपकी इंद्रियों पर हमला बोल देंगी और आपके आसपास दिखाई देंगी? कहिए। आपको मछलियाँ क्यों दिखाई दे रही हैं? क्योंकि आपने अपने आपको ऐसी जगह पर रख दिया है जहाँ जिधर भी देखोगे क्या दिखाई देना है? मछलियाँ ।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org