आशा में
1 min readAug 6, 2020
वह
हँसने की चाह में कितना रोता है
वह
समझता है कि
हँसा जा सकता है
हर बात पर और हमेशा
कुछ यही बात
समझाता है
वह सब को
लोग नहीं समझते
पर वह
समझाता रहता है
तब तक
जब तक
या तो लोग हँस नहीं देते
या
वह
वह रो नहीं पड़ता
फूट-फूट कर रोता है
सब के न हँसने पर
पर फिर
चुप हो जाता है
क्योंकि
उसे हँसना जो है।
~ प्रशान्त (12 जून, 1996)
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