आचार्य प्रशांत: आलस के मज़े होते हैं। आलस से ज़्यादा मज़ेदार कुछ मिला ही नहीं अभी तक!
बहुत मोटे-मोटे बच्चे देखे हैं मैंने, तीन साल, चार साल की उम्र तक घर पर पड़े थे एकदम मोटे, उनका स्कूल में दाखिला होता है वह तुरंत पतले हो जाते हैं। दोस्त-यार मिल गए, खेल का मैदान मिल गया, अब दिन-भर भागा-दौड़ी। चाहता कौन है कि चुपचाप बैठें रहे! घर में क्या था? वही मम्मी, वही पापा।