आलस की समस्या और काम में मन न लगना

प्रश्न: आचार्य जी, किसी भी काम में मन नहीं लगता। आलस बना रहता है। इस आलस से छुटकारा कैसे पाएँ?

आचार्य प्रशांत: आलस से ज़्यादा सुन्दर कुछ मिला नहीं। आलस के मज़े होते हैं। आलस से ज़्यादा मज़ेदार कुछ मिला ही नहीं अभी तक।

सुबह-सुबह बिस्तर पर पड़े रहने के मज़े होते हैं। और एक मज़ा ये होता है कि- खिड़की खोलो, सर्दी की धूप है, सामने बागीचा है, वहाँ जाओ भागकर। और अगर बागीचा ही न हो? तो पड़े रहो। फ़िर तो आलस ही सबसे ज़्यादा मज़ेदार है।

आलस सिर्फ़ ये बताता है कि जीवन में कुछ ऐसा है ही नहीं जिसकी ख़ातिर तुम दौड़ लगा दो। जैसे ही वो मिलेगा, दौड़ना शुरू कर दोगे। ‘अहम्’ को कुछ तो चाहिए न पकड़ने को। कुछ और नहीं मिलता है, तो वो आलस को पकड़ लेता है।

आलस अपने आप में कोई दुर्गुण नहीं है।

आलस सिर्फ़ एक सूचक है।

जब कुछ अच्छा मिल जाएगा, आलस अपने आप पलक झपकते विदा हो जाएगा।

बहुत मोटे-मोटे बच्चे देखे हैं मैंने, घर पर पड़े हुए, तीन-चार साल तक के बच्चे। देखे हैं? उनका स्कूल में दाख़िला होता है, तुरंत पतले हो जाते हैं। क्यों? दोस्त-यार मिल गए, खेल का मैदान मिल गया। अब दिनभर भागा-दौड़। अब चाहता कौन है कि घर में चुपचाप बैठ जाएँ! घर में क्या था? वही मम्मी, वही पापा! मन ही नहीं करता हिलने का। बाहरवीं पास करके, जितने भी आई.आई,टी. में पहुँचते थे, उसमें आधे बिलकुल थुल-थुल। क्यों? क्योंकि घर में बैठकर पढ़ाई कर रहे थे। पहले सेमेस्टर के बाद जब घर छुट्टियों के लिए जाते थे, सब पतले दिखते थे। क्यों? क्योंकि वहाँ इतना कुछ मिल गया, कि कौन बिस्तर पर पड़े रहना चाहता है।

इतने नए दोस्त-यार, खेलने की इतनी सुविधाएँ। लगातार जगे रहने के इतने आकर्षण। रातभर एक कैंटीन से दूसरी कैंटीन, एक हॉस्टल से दूसरे हॉस्टल। कभी कुछ कर रहे हैं, कभी कुछ। अपने आप पतले हो गए। क्योंकि कुछ मिल गया जो बिस्तर से ज़्यादा मूल्यवान था, आकर्षक था, सुन्दर था।

आलस — एक अर्थ में तो सन्देश देता है बस।

क्या सन्देश?

जीवन नीरस है।

कुछ है नहीं ऐसा कि तुममें बिजली कौंध जाए।

कुछ है नहीं ऐसा कि तुम लपक के खड़े हो जाओ, और कहो कि — “ये चाहिए।”

और जब तक वो नहीं रहेगा, तो आलस ही रहेगा।

ठीक है! आलस के ही मज़े ले लो।

प्र: आचार्य जी, ऐसा भी होता है कि जो काम करना होता है, उसको भी टालते रहते हैं। ऐसा क्यों?

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org