आलस का उचित उपाय

ऊर्जा को सही दिशा देने के कुछ नियम होते हैं:

१. पहला नियम: ऊर्जा बोध के पीछे बहती है।

जब तुम कुछ बिल्कुल ठीक-ठीक समझ जाते हो तो तुम्हारी ऊर्जा बिल्कुल एक धारा में बहने लग जाती है। वही ऊर्जा पूरे तरीके से नष्ट भी हो सकती है, वही ऊर्जा जो कर्म में बदल सकती थी, वही ऊर्जा गॉसिप में बदल जाती है, आलस में बदल जाती है, विध्वंसक चीज़ों में चली जाती है, इधर-उधर की बातों में बदल जाती है यदि वहाँ बोध नहीं है।

जिन भी लोगों को जीवन में उत्साह चाहिए, ऊर्जा चाहिए, उन्हें उत्साह की फ़िक्र छोड़ देनी चाहिए और समझने की फ़िक्र करनी चाहिए। उनको ये देखना चाहिए ध्यान से कि, ‘क्या मैं समझ रहा हूँ कि मेरे साथ क्या हो रहा है? क्या मैं ठीक-ठीक समझ पाया हूँ कि मैं क्या कर रहा हूँ? मेरे मन में क्या चल रहा है, क्या मुझे पता है ठीक-ठीक?’

आप आलस की फ़िक्र छोड़ ही दीजिये, आप बस ये देखिये कि, ‘मैं जो कर रहा हूँ, मुझे उसकी समझ कितनी है?’

अगर समझ होगी उससे ऊर्जा अपने आप निकलेगी, ये पहला नियम हुआ।

२. दूसरा नियम: ऊर्जा प्रभावों से नष्ट होती जाती है।

अब तुम खुद ही अपनी ज़िन्दगी देख लो कि तुम अपनी ज़िन्दगी में क्या करते हो, अगर प्रभावों से भरे हो तो तुम्हारी ज़िन्दगी आलस से ही भरी रहेगी। ये देखो कि तुम ज़िन्दगी में जो कुछ भी करते हो, क्या उसके पीछे तुम्हारी समझ है? और अगर तुम्हारी अपनी समझ से निकलती हो तो आलस का सवाल ही नहीं होता।

लेकिन हमारा मन एक डस्टबिन बन गया है। समाज, परिवार, दोस्त-यार सब उसमें आकर के कुछ-न-कुछ कूड़ा डाल जाते हैं।

कोई तुम्हें कूड़े से थोड़ा-सा छुआ भी दे तो तुम उससे कितना लड़ोगे पर तुम्हे यहाँ खबर भी नहीं है कि तुम्हारे दिमाग को कूड़े से भर ही दिया गया है।

देख रहे हो हालत?

इसी कूड़े का नाम है बाहरी प्रभाव। इसी से हल्का होना है, यही वो दस टन का बोझ है जो तुम्हारी सारी उर्जा सोखे ले रहा है। इसी से हल्के हो जाओगे तो आलस बिलकुल नहीं बचेगी जीवन में। इसी ने तुम्हें भारी कर रखा है।

अब इसमें एक पेंच है कि तुम्हें कूड़े से प्यार हो गया है, तुम उसे लव लेटर्स लिखते हो।

तुमने कूड़े को बड़े प्यारे-प्यारे नाम दे रखे है: रिश्ते, सम्बन्ध, दोस्त-यार, और भी बड़े प्यारे नाम दे रखे हैं।

उठ रही है उससे बदबू बिल्कुल भयानक, पर तुमसे वो कूड़ा छोड़ा नहीं जा रहा।

साथ ही, मैं किसी व्यक्ति विशेष को छोड़ देने की बात भी नहीं कर रहा हूँ, मैं कह रहा हूँ कि लोग नहीं बदल सकते लेकिन सम्बन्ध का आधार तो बदल सकता है।

दो लोग वही हैं, पर उनके बीच में जो मतलब का सम्बन्ध है, क्या वो प्रेम का सम्बन्ध नहीं हो सकता?

तुम्हारे सम्बन्ध मतलब के सम्बन्ध हैं, इसी कारण जीवन पर बोझ है, इसी कारण हालत ऐसी है कि जीवन में कोई ऊर्जा नहीं, कोई उत्सव नहीं, कोई उपलब्धि नहीं; संबंधों का आधार बदलो, प्रेम को जानो और जीवन खुद-ब-खुद बदलेगा।

आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

More from आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant