आरक्षण का सामना क्यों करना पड़ता है?

अब, अगर तुम वास्तव में जानना चाहते हो कि भारत का संविधान क्या कहता है, सारे प्रयास कर के उस तक जाओ। और ये कोई बहुत मोटा ग्रन्थ नहीं है। इतना सा, पतला सा है, भारत का संविधान। और जिन उल्लेखों की हम बात कर रहे हैं, जहाँ पर सारे अधिकार उल्लिखित हैं — वो मूल अधिकारों की बात कर रहा है — उल्लेख इक्कीस से शुरू होता है, और उल्लेख तीस या बत्तीस पर ख़त्म हो जाता है। सिर्फ दस उल्लेख पढ़ने हैं, और हर उल्लेख दो वाक्य है, बस। इससे ज्यादा नहीं है। और कितना मज़ा आता अगर तुमने पढ़ ही रखा होता। क्या वह सच में एक महत्वपूर्ण परिज्ञान नहीं होता। सोचो इसके बारे में। तुम्हें चालीस हज़ार पन्ने नहीं पढ़ने हैं। जितने मूल अधिकार हैं वो तीन-चार पन्नों में ख़त्म हो जाते हैं। और बहुत साधारण भाषा में लिखी हुई है।

तो, पहली बात तो ये कि जो बात का आधार है, वो ठीक नहीं। दूसरी बात, हम किस सब के बारे में शिकायत करने जा रहे हैं? क्या मैं इस बात की शिकायत कर सकता हूँ कि कुछ लोग बैठे हैं जिनका ध्यान नहीं बन पा रहा?

क्या मैं इस बात की शिकायत कर सकता हूँ, कि कुछ लोग बैठे हैं, जिनका ध्यान नहीं बन पा रहा? क्या मैं ये शिकायत कर सकता हूँ, कि मैं अधिक वज़नी हो गया हूँ? क्या मैं ये शिकायत कर सकता हूँ, कि आज गर्मी ज़्यादा है? क्या मैं ये शिकायत कर सकता हूँ, या तुम लोग कर सकते हो, कि एक एक बेंच पर तीन-तीन, पाँच-पाँच लोगों को बैठना पड़ रहा है, और मैं जानता हूँ कि ये असुविधाजनक होगा। पसीना भी आ रहा होगा, और जगह भी कम पड़ रही होगी। हम जीवन में किस किस के बारे में शिकायत करेंगे? शिकायतों का कोई अंत नहीं है। क्योंकि…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org