Jul 20, 2022
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आम आदमी जीवन भर
खटता ही तो रहता है,
लगा ही तो रहता है,
तरह तरह के दाम चुकाता है,
कहाँ कहाँ नहीं सर झुकाता है।
वो अपनी राह बदलने को
तैयार हो जाता है,
पर अपने आप को कभी
बदलने को तैयार नहीं होता।
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आम आदमी जीवन भर
खटता ही तो रहता है,
लगा ही तो रहता है,
तरह तरह के दाम चुकाता है,
कहाँ कहाँ नहीं सर झुकाता है।
वो अपनी राह बदलने को
तैयार हो जाता है,
पर अपने आप को कभी
बदलने को तैयार नहीं होता।
रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org