आप ही भगवान हैं?

आप ही भगवान हैं?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आपको सादर प्रणाम। मैंने एक लेख पढ़ा था स्वामी विवेकानंद जी के ऊपर जिसमें उनका एक वक्तव्य था कि यू आर नीयरली गॉड इफ यू नो योर सेल्फ़ देट यू आर अ सोल (तुम अपनेआप को यदि आत्मा जानते हो, तो तुम ब्रह्म ही हो)। तो मुझे लगा कि यह तो बहुत आसान है। जबकि ऐसे लोग जो हुए हैं, उनको तो बहुत सारे पापड़ बेलने पड़े, बहुत सारा संघर्ष करना पड़ा वहाँ तक पहुँचने के लिए। तो बस इसी के ऊपर निवेदन है कि कुछ मार्गदर्शन करें।

आचार्य प्रशांत: देखिए, जब हमें कहा जाता है, विशेषकर ज्ञान मार्ग में, वेदांत में कि जानना पर्याप्त है तो हमको ऐसा प्रतीत होता है जैसे काम बहुत आसान है। जैसे अभी स्वामी विवेकानंद को उद्धृत करते हुए कहा कि यू आर नियरली गॉड, जस्ट नो योरसेल्फ़ टू बी द सोल । यहाँ पर सोल से आशय आत्मा से है, और गॉड से आशय ब्रह्म से है — ‘तुम अपनेआप को यदि आत्मा जानते हो, तो तुम ब्रह्म हो ही।’

ब्रह्म होना या ब्रह्मस्थ होना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है, स्वामी जी के शब्दों में, बहुत आसान है। जो स्वयं को जीव या अहंकार नहीं, अपितु आत्मा जान ले, वह ब्रह्म हो गया। तो उन्होंने कहा कि तुम अपनेआप को आत्मा जान लो, तुम ब्रह्म हो गए। हमको लगा कि काम बहुत आसान है। इतना ही तो करना है कि कह दे कि हमने अपनेआप को आत्मा जान लिया; काम आसान है। और जैसा अभी प्रश्नकर्ता ने कहा कि जो ज्ञानी हुए हैं, साधक हुए हैं, उन्हें तो बड़े पापड़ बेलने पड़े हैं। हमें बताया जाता है कि उन्होंने अनगिनत वर्षों तक साधनाएँ करीं, त्याग किये, स्वाध्याय किया; तब जाकर के उनके ज्ञान-चक्षु खुले, कुछ बात बनी।

कहाँ एक ओर हमें यह पता है कि बड़ी मेहनत करनी पड़ती है, और बीस-चालीस साल लगते हैं; किंवदंती कहती है कि कई जन्म लग जाते हैं और कहाँ यहाँ स्वामी जी ने बता दिया कि बस जान लो कि तुम आत्मा हो और तुम्हारा काम हो गया। तो यह सुनकर के हमें आशा भी बँधती है और आश्चर्य भी होता है। आशा यह बँधती है कि काम आसान है, जल्दी से हो जाएगा और आश्चर्य यह होता है कि काम इतना आसान हो कैसे सकता है। हमसे पहले जो आए, उनके लिए तो यह काम बड़ा मुश्किल रहा है, हमारे लिए इतना आसान कैसे हो सकता है?

मैं बताता हूँ कि चूक कहाँ हो रही है, ध्यान से समझिए! ज्ञानमार्ग में जानना सर्वोपरि है, बल्कि जानना ही सबकुछ है। और जानना होती है बड़ी सूक्ष्म घटना, बहुत सूक्ष्म घटना; उसका कोई सीधा-सीधा, प्रत्यक्ष, भौतिक प्रमाण होता नहीं। और उसको बहुत आसानी से सत्यापित भी नहीं किया जा सकता, जाँचा-परखा नहीं जा सकता कि जानते हो या नहीं। उदाहरण के लिए, मेरे हाथ में यह तौलिया है (तौलिया हाथ में उठाकर), यह बात बहुत आसानी से जाँची जा सकती है, सत्यापित भी की जा सकती है और झुठलाई भी जा सकती है। ठीक है न? बिलकुल पता चल जाएगा कि हाथ में…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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