आप मत कहिये कि अहं झूठ है

प्रश्नकर्ता: एक बार एक संत से पूछा गया कि, “कर्ता और अकर्ता भाव में अंतर क्या है?” तो उनका उत्तर आया कि, “कर्ता और अकर्ता कोई है ही नहीं।” और अभी आपने बंधनों की बात कही। बंधन मेरे ही हैं और इन बंधनों से छूटना मुझे ही है। इन दोनों में क्या फ़र्क़ है, मुझे समझ नहीं आ रहा।
आचार्य प्रशांत: बस यही बात सही है, इसी को पकड़ लीजिए — आप बंधन में हैं, आपको बंधनों से छूटना है।