आपको वहीं भेजता हूँ जहाँ खुद गया हूँ

मन और जीवन के जो विशेषज्ञ हुए हैं उनके पावों में जाकर बैठा हूँ। खेद की बात ये है कि ऐसा कोई जीवित है नहीं या मिला नहीं तो मुझे बस इतनी ही सुविधा थी कि जो हो गए अतीत में उनके शब्दों के पास जाकर बैठ जाऊं, उनकी वाणी सुन लूँ, उनके ग्रंथ पढ़ लूँ।

वो मैंने किया है इसीलिए आपको बड़े अधिकार और विश्वास के साथ कहता हूँ कि आप भी करिए। वो मैंने करा ही नहीं है, वो मैं आज भी करता हूँ।

मुझे अगर थोडा मनोरंजन करना होता है जो वास्तव में मनोशुद्धि होती है तो वो कैसे होती है? मैं उन्हीं के पास जाता हूँ जिनके पास मैं आपको भेजता हूँ।

वो पोषण नहीं मिलेगा तो भीतर कुछ सूख जायेगा। कुपोषित हो जायेगा।

तो ये दो अलग-अलग तल हैं जीने के। एक बाहरी - जहाँ बात शरीर की होती है। जहाँ बात धन की होती है। जहाँ बात ताकत की होती है उसका ख्याल रखा जाना भी ज़रुरी है। खाना-पीना ठीक रखो। और रूपए पैसे से भी आदमी को ठीक होना चाहिए। इतना तो होना चाहिए कि हाथ नहीं फैलाना पड़े।

जानने वाले कह गए हैं कि उस बाहरी तल का ख्याल तो रखो, उससे कहीं ज़्यादा ज़रूरी है भीतरी तल। भीतरी पोषण अपने आपको देते चलना।

पूरा वीडियो यहाँ देखें।

आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

More from आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant