आनंद हो संबंधों का आधार

बात सुनने में थोड़ी अजीब लगेगी, पर ध्यान दोगे तभी समझ आएगी। ध्यान नहीं दोगे, तो कहोगे, “सर आप बड़ी विपरीत बात कर रहे हैं।”

जिसने अपने अकेलेपन में खुश रहना सीख लिया, सिर्फ़ वही पार्टी (उत्सव) में मज़े कर सकता है। जो अकेले भी खुश है, सिर्फ़ वही पार्टी में भी खुश रह पाएगा। और जो अपने अकेलेपन में दुखी है, और पार्टी में इसीलिए जा रहा है ताकि वहाँ अपना अकेलापन मिटा सके, तो वो पार्टी में भी तन्हा ही रहेगा।

दूसरे इसलिए नहीं होते हैं कि दूसरे तुम्हारे अकेलेपन को दूर करें। आदमी जब दूसरे के पास जाता है, तो इसके दो कारण हो सकते हैं। पहला ये कि, “मैं बड़ा अकेला हूँ, मेरे दिल में गड्ढा है, और तू उस गड्ढे को भर दे।” ज़्यादातर लोगों की यही वजह रहती है। दूसरी वजह होती है कि, “मैं इतना खुश हूँ कि तेरे पास आया हूँ। मैं खुश पहले से ही हूँ, और इतना हूँ कि तेरे पास आ गया हूँ।” पहली वजह कहती है कि, “मैं इतना दुखी हूँ कि तेरे पास आ गया हूँ।” और दूसरी वजह कहती है कि, “मैं इतना खुश हूँ कि मैं तेरे पास आ गया हूँ।” बात समझ में आई? तुम किस वजह से जाना चाहते हो किसी के पास?

प्रश्नकर्ता: खुश होकर।

आचार्य प्रशांत: पर हम ऐसे नहीं जाते न। हम जाते हैं कि, “अगर तू न मिला, तो मैं दुखी हो जाऊँगी।” हम ये नहीं कहते कि, “तू हो, न हो, खुश तो मैं हूँ ही, और अपनी ख़ुशी में तेरे पास आई हूँ।” हम ये कहते हैं कि, “तू मिलेगा तो मैं खुश होऊँगी।” ये बड़ी गड़बड़ है, क्योंकि अब दूसरा तुम्हारी ज़रूरत बन गया है। अब तुम उसको पकड़ कर रखना चाहोगे, और इससे हज़ार तरह की बीमारियाँ निकलेंगी। तुम…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org