आध्यात्मिक साधना में वस्त्र आदि का महत्व

हर वो चीज़, जो तुमको तुम्हारे नियमित जगत से आगे की याद दिलाती हो, उपयोगी है।

मन का बड़ा स्वार्थ है ये मानने में कि जो दुनिया उसने अपने लिए रच ली है, वो दुनिया ही सत्य है। आवश्यक होता है मन को निरंतर यह अहसास देते रहना, ज़रा चोट देते रहना कि — तुम्हारी दुनिया से आगे भी एक दुनिया है, और न सिर्फ़ तुम्हारी दुनिया से अलग है, बल्कि तुम्हारी दुनिया से ऊँची है, श्रेष्ठ है।

यही वजह थी कि परम्परा रही कि मंदिर जाओ, तो पहले कुछ तैयारी करके जाओ। तुम्हें बताया जा रहा था कि जिस जगह जा रहे हो, वो जगह कुछ ख़ास है। अभी भी देश में कई मंदिर हैं, जहाँ आपको जाना हो, तो पहले एक माह का व्रत रखना पड़ेगा। कभी एक माह, कभी दस दिन।

तुम्हारी अपनी दुनिया में भी अगर तुम किसी ऊँचे व्यक्ति के पास जाते हो, तो इच्छा उठते ही तुम तत्काल तो नहीं पहुँच जाते। पहले तुम उससे समय माँगते हो, महीने भर पहले से तैयारी करते हो। और ये सब जब होता है, तो तुम्हें अहसास रहता है कि जिससे तुम मिलने जा रहे हो, वो विशिष्ट है। तुम्हारी ही टोली, या तुम्हारे ही समुदाय का नहीं है, कि जब मन किया गए, खटखटाया, और गपशप कर आए।

तो फिर मंदिरों से सम्बन्धित, पर्वों से सम्बन्धित, शास्त्रों से सम्बन्धित, गुरुओं से सम्बन्धित, नियम बाँधे गए। शास्त्र भी अगर पढ़ने बैठना है, तो ये नियम कायदे हैं, इनका पालन करो। मंदिर अगर जाना है, तो ऐसे-ऐसे कपड़े पहनकर ही जा सकते हो, बिना स्नान किए नहीं जा सकते।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org