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आध्यात्मिक मनोरंजन के ख़तरे

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जैसा आपने अपने सत्रों में आध्यात्मिक मनोरंजन का ज़िक्र किया है व निंदा की है, तो मैं जानना चाहती हूँ कि कथा और सत्संग इत्यादि में जो सामूहिक भजन-कीर्तन और नाम जपा जाता है, वह क्या माना जाएगा?

आचार्य प्रशांत: कुछ मानने की ज़रूरत नहीं है, जाँच लो। भगवत्ता के आयोजन के नाम पर जो हो रहा है, वह किस कोटि का है, इस बारे में कोई मान्यता रखने की क्या आवश्यकता है, जाँच ही लो न सीधे-सीधे।

जो कुछ हो रहा है, अगर उससे वास्तव में शांति मिल रही है, अगर उससे वास्तव में मन की गाँठ खुल रही है तो जो हो रहा है, वह भला है, शुभ है। और जो हो रहा है, उससे अगर सिर्फ़ वृत्तियों को उद्दीपन मिल रहा है, तमाम तरह के विकारों को, वासनाओं को अभिव्यक्ति मिल रही है, तो जो हो रहा है, उसको भले ही कोई शुभ नाम दे दिया गया हो, पवित्र-पावन नाम दे दिया गया हो, फिर भी जो हो रहा है, वह मात्र मन का खिलवाड़ है, और मन का खिलवाड़ बड़ा घातक हो जाता है अगर उसे अध्यात्म का नाम दे दिया जाए।

यही आख़िरी पैमाना है, क्योंकि अध्यात्म का यही पहला और आख़िरी लक्ष्य है — मन की धुलाई, चित्त की निर्मलता, भय से मुक्ति, स्पष्टता की प्राप्ति, गहरी और स्थायी शांति। कथा, कीर्तन, भजन, जागरण, जगराता, जो भी हो रहा है, उसमें तुम यही जाँच लेना कि बोध की, सत्य की, शांति की उपलब्धि हो रही है या नहीं हो रही है — सुख देने के लिए नहीं है अध्यात्म, भावनात्मक उत्तेजना देने के लिए नहीं है अध्यात्म।

आचार्य प्रशांत और उनके साहित्य के बारे में जानने के लिए आपका स्वागत है। आप संस्था से सीधे संपर्क भी कर सकते हैं।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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