आध्यात्मिकता — व्यक्ति गौण, सत्य सर्वोपरि

कुल करनी के कारने, ठिग हो रहिगो राम । तब कुल का को लाज है, जब जम की धूम धाम ॥

-कबीर

वक्ता: जो एक आम साधारण गृहस्थ है, जो अपने चारों ओर हमें दिखाई देता है, उसके लिए कहा है ये दोहा कबीर ने।

“कुल की मर्यादा चलाने के लिए, अपने कथाकथित कर्त्तव्यों का पालन करने के लिए, राम से च्युत हो बैठे रहे तुम, राम से अलग हो बैठे रहे तुम। अब कहाँ है वो कुल, जब मृत्यु सामने खड़ी है? कहाँ है?” बात को समझेंगे कि इशारा किधर को है।

सतह पर तो कबीर वही कह रहे है और उतना ही कह रहे है, जितना अभी हमने कह दिया। “जीवन भर तुम्हारे लिए ही खटता रहा, जीवन भर तुम्हारे ही लालन-पोषण में लगा रह गया। जब समय था तो परिवार, गृहस्थी, बीवी-बच्चे, इन्ही झंझटो में लगा रह गया। अब मौत सामने खड़ी है, तो पूरा जीवन जो व्यर्थ गया, वो साफ़ दिखाई दे रहा है। अब तुम क्या साथ चलोगे?”

थोड़ा समय लेकर के आए थे, उसी को हम जीवन कहते हैं। वो समय मुक्ति की साधना में भी व्यतीत हो सकता था। और वो समय बीत गया घरेलू झंझटो में, निम्नतम पचड़ो में। तो एक तो ये तल है जिस पर ये अर्थ है। और एक दूसरा तल है, जिस पर मृत्यु वही नहीं है जो जीवनकाल के इतने वर्षों के बाद आती है। वहाँ पर मृत्यु वो घटना है, जो प्रतिपल ही घटती है। वहाँ पर मृत्यु वो घटना नहीं है जो गृहस्थी में बिताए गए सारे वर्षों के बाद आए, वहाँ पर मृत्यु वो डर है, जिसके कारण आप गृहस्थी में संग्लग्न रहते हैं।

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org