आध्यात्मिकता को लेकर लोगों में इतना विकर्षण क्यों?
अध्यात्म को लेकर विकर्षण उनमें है जो मूल्य ही देता है मन को, शरीर को, और मन से उठे हुए समाज को। तो जो इनको मूल्य देता है, उसको तो बुरा ही लगेगा कि इनके ऊपर जो आत्मा है उसको मूल्य क्यों दे रहे हो।
चुनाव तो करना ही पड़ता है या तो मन को शरीर के साथ जोड़ लो कि मन को खुशी मिले, मन को हर तरह के सुख मिले, उत्तेजनाएँ मिले, भोग मिले, विलास मिले, लिप्साएँ मिले, यह है एक तरीका जीने का। और इस तरीके से जी रहे हो तो तुम्हें बुरा लगेगा कि मन के अलावा किसी और के गुलाम काहे हुए जाते हो? मन के अलावा किसी और को काहे समर्पित हुए जाते हो?
तो जब आप एक वास्तविक सन्यासी को देखते हैं और आप पाते हैं कि वो अपना पोषण न समाज से ले रहा है, न शरीर से ले रहा है, न मन से ले रहा है, उसको उसका आहार आत्मा से मिल रहा है तो बुरा तो लगता ही है क्योंकि उसका होना यह साबित कर देता है कि आप झूठे हो। उसका होना यह साबित कर देता है कि आपके पास भी विकल्प था और विकल्प है अभी भी और आप अगर दुःख में हो तो अपने द्वारा चुने गए विकल्प की वजह से हो।
वरना तो यह बड़ा बढ़िया बहाना रहता ही है कि जीवन दुःख है और हम करे ही क्या? इसके अलावा तो कोई तरीका ही नहीं था जीने का। मैं एक तरह की नौकरी, एक तरह के घर में फंसा हुआ हूँ, जीवन दुख है! लेकिन मैं करूँ क्या?
और जब आप एक वास्तविक सन्यासी को देखते हो तो आपका झूठ पकड़ा जाता है। उसको देख कर पता चल जाता है कि देखो! विकल्प तो था, हमने चुना नहीं। वह विकल्प हमने चुना नहीं और अब हम दूसरी तरफ फंसे हुए हैं, पिज़्ज़ा खा रहे हैं और पछता रहे हैं।
इसीलिए आदमी सन्यासी से ज़रा घबराता है, उससे ज़रा द्वेष करता है। सन्यासी का होना वास्तव में अपमानजनक है।
पूरा वीडियो यहाँ देखें।
आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है।