आधी रोटी खाएँगे, जंग जीत के लाएँगे

आचार्य प्रशांत: मैं छोटा था तो मुझे पढ़ने के साथ-साथ प्रतिस्पर्धात्मक होने का बड़ा शौक था। मेरे लिए ज़रूरी हो गया था, फर्स्ट (प्रथम) आना। तो एग्जाम (परीक्षा) हुआ करें फिर टीचर्स (अध्यापक) आएँ, तो वो आंसर-शीट (उत्तर-पुस्तिका) के बंडल लेकर के आती थी। तो वो ऐसे रख दें और फिर वो कॉपियाँ बँटती थीं। और उस वक्त सबकी धड़कने थम जाती थी, कि भई अब मार्क्स (अंक) पता चलेंगे।

तो एक सबक सीखा मैंने एक दिन। कॉपीज़ ऐसे ही सब बँट रहीं थीं। मैंने कहा मेरे पंचानवे आए हुए हैं। और मैं, पंचानवे आते भी हैं, तो मैं जाता हूँ तुरंत मैम के पास कि, “देखिए-देखिए यहाँ आपने एक नंबर काट लिया है, यहाँ नहीं होना चाहिए। पंचानवे का छियानवे कर दीजिए।” मैं बिलकुल जान लगाए हुए हूँ कि पंचानवे का छियानवे हो जाए। बहुत अखर रहा है मुझको कि सौ में पंचानवे क्यों आए हैं। और मैं देख रहा हूँ बहुत सारों के अड़सठ आए हैं, एक के छयालीस आए हैं, बहत्तर आए हैं। वो अपने बैठे हुए हैं, कॉपी मिली हुई है, मज़े मार रहे हैं।

अब ये लगभग हर सब्जेक्ट (विषय) की कॉपीज़ में हो। और मेरे लिए बड़ी दिल तोड़ने वाली बात होती थी कि, “अगर मैंने लगाया है कि सत्तानवे आने चाहिये तो पंचानवे क्यों आ गए? सत्तानवे माने सत्तानवे होना चाहिए। मेरा हक है।”

फिर ये जब मैंने देखा, ऑब्जर्व करा तो एक दिन अचानक कुछ कौंधा। यही कि अक्सर जिसके पास जितना ज़्यादा होता है उसकी भूख भी उतनी ही ज़्यादा होती है। ये बिलकुल ज़रूरी नहीं है कि आपके पास कम है तो आपकी भूख ज़्यादा होगी। और ये बात दोनों आयामों में लागू होती है — सांसारिक भी और आध्यात्मिक भी।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org