आदमी का होना ही हिंसा है
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हम सिर्फ़ माँस के लिए थोड़ी ही जानवरों को मार रहे हैं। जितने तरीके हो सकते हैं उन सभी से मार रहे हैं। कोई तरीका हमने नहींं छोड़ा है जानवरों को सताने का। उनकी हत्या करने का। उनका खून पीने का।
और सिर्फ़ इसलिए क्योंकि उनमें हमारे जितना कपट नहींं है। नहीं तो हमारे पास और कौनसी योग्यता थी कि हम पशुओं पर राज कर लेते? कपट ज़्यादा है हमारे पास। उस कपट को ही बुद्धि का नाम दे देते हैं। बंदूक हमारे पास है, इसलिए हम राज कर रहे हैं। और अगर बंदूक तुम्हारे पास है, इसलिए तुम राज कर रहे हो जानवरों पर, फिर तुम ये क्यों कह रहे हो कि जानवरों के यहाँ तो जंगल का कानून चलता है। जंगल का कानून तो यही होता है न?
‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’।
जंगल का कानून अर्थात बल प्रयोग। जिसके पास बल है, वही राजा। तुम भी तो जानवरों पर बल से ही राज कर रहे हो न? या और कोई कारण है तुम्हारे स्वामित्व का? और कोई कारण है तुम्हारे अत्याचार का?
बस यही तो है। तुम बंदूक बनाना जानते हो। तुम्हें दवाई पर शोध करना होता है। तुम जानवरों को पकड़ लेते हो और उन्हें घनघोर पीड़ा से गुज़ारते हो।
तुम्हारी प्रसाधन सामग्री भी जानवरों के खून से नहाई हुई है। तुम्हारे घर में बच्चा पैदा होता है तो हम खुशी मनाते हैं। तुम्हें ये समझ में ही नहींं आता कि एक बच्चे का मतलब होता है कि एक साथ में लाखों पेड़ कटने हैं।
तुम जब बच्चे पैदा करते हो तो क्या उसके साथ-साथ ज़मीन भी पैदा कर देते हो?
कहाँ से आएगी उसके लिए ज़मीन?
कहाँ से आएगा उसके लिए अन्न?
कहाँ से आएगी उसके लिए हवा?
क्या ये सब भी तुम पैदा करते हो?
वो जो बच्चा पैदा हुआ है, उसके लिए ज़मीन आएगी जानवरों की हत्या करके। उसके लिए अन्न आएगा जानवरों की हत्या करके। और कोई तरीका ही नहींं है।
कपड़े कहाँ से आएँगे, बताओ मुझे?
घर कहाँ से आएगा? बच्चा पैदा हुआ है सो घर भी बनाएगा न?
घर की सामग्री और घर के लिए पहले ज़मीन कहाँ से आएगी?
तो ऐसा नहींं है कि शाकाहारी हिंसा नहीं कर रहा। आदमी इस मुकाम पर पहुँच गया है जहाँ पर आदमी का होना ही हिंसा है।
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