आदत नहीं, औचित्य

प्रश्नकर्ता (प्र): प्राथमिकता और आदत में क्या अंतर है?

आचार्य प्रशांत (आचार्य): हर प्राथमिकता एक आदत है, इनमें कोई अंतर नहीं है। कोई भी आदत आकर नहीं कहेगी, ‘मैं एक आदत हूँ’। हर आदत यही कहेगी कि ‘मैं’…?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): प्राथमिकता हूँ।

आचार्य: प्राथमिकता हूँ। जिसको भी तुम प्राथमिकता कहते हो, वो सिर्फ़ आदत ही है।

अगर प्राथमिकताएं हैं, तो फिर समभाव का क्या अर्थ रह गया? समभाव का तो अर्थ ही यही है कि कुछ भी प्राथमिक नहीं है, एक ही तत्व है। तो प्राथमिकता जैसा कुछ होता नहीं, हाँ सम्यकता होती है। सम्यकता मतलब? जो उचित है, वो करना।

प्राथमिकता में चुनाव है, सम्यकता में निर्विकल्पता है।

वहाँ चुनाव है ही नहीं। अंतर समझाना। प्राथमिकता देने का अर्थ है- ‘अ’ को ‘ब’ से ज़्यादा महत्वपूर्ण मानना। और इसके लिए क्या करना पड़ेगा?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): चुनाव।

आचार्य: पर सम्यक कर्म का मतलब होता है- केवल एक है, दूसरा नहीं। चुनाव करने के लिए कोई ‘दूसरा’ नहीं। ऐसा कर्म सम्यक कर्म है।

प्र १: सर, अगर हमें ये पता चल जाए कि ये उचित विकल्प है, तो उसके पूर्व भी तो हम उसे दो-चार विकल्पों में से छांटेंगे?

आचार्य: अगर छांट रहे हो, तो अभी वो दूसरे विकल्प अपना ज़ोर दिखा ही रहे हैं, नहीं तो छांटने की ज़रुरत ही नहीं पड़ती। और अगर अभी छांट रहे हो, तो सावधान रहना, दूसरों का ज़ोर बढ़ भी सकता है। इसीलिए जब मैं किसी से बोलता…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org