आत्म-साक्षात्कार का झूठ

आचार्य प्रशांत (आचार्य): जब हम रत्न की बात कर रहे होते हैं और उसकी सफ़ाई करनी है क्योंकि वो मिट्टी में पड़ा था, मैला हो गया है, कीचड़ जम गया है, तो हम कीचड़ की बात ऐसे करते हैं जैसे कि वो कोई बात करने लायक चीज़ ही नहीं है, “उसको तो जल्दी से हटाओ, फिर देखो कैसे रत्न जगमगाएगा।“ ठीक है न? बात का लहज़ा हमारा कुछ ऐसा रहता है। उस पूरी बात में ध्यान कीचड़ पर बहुत ही कम दिया जाता है, सारा ध्यान किस पर दिया जाता है? रत्न पर दिया जाता है। कीचड़ को तो यूँ ही दो-कौड़ी की अनावश्यक चीज़ मान लिया, कि, “ये ज़बरदस्ती आकर के इसके ऊपर बैठ गई थी, हट गई, रत्न जगमगाने लग गया।”

इस प्रकार की उपमा से प्रभावित होकर बहुत लोगों में छवि ये बैठ गई है कि, “भीतर कोई रत्न बैठा हुआ है, वो रत्न ही आत्मा है और वही असली चीज़ है; उसी की चर्चा करनी है, वही समस्त अध्यात्म की विषयवस्तु है, सब श्लोक उसी का प्रतिपादन करते हैं। और जो बाकी बाहर की हमारी परतें हैं, माने मन और शरीर, वो तो कीचड़ हैं, उनकी चर्चा क्या करनी!”

भई! जब आपने रत्न का उदाहरण लिया तो उसमें आपने कीचड़ की कितनी बात करी? बस यही कहा कि, “कीचड़ तो वो चीज़ है जिसको जल्दी से झाड़ देना है, उसकी उपेक्षा कर देनी है, हट गया।“ उसके बाद आप रत्न हाथ में लेकर आनंदित हो रहे हैं, कि, “आहाहाहा! क्या जगमग-जगमग!” तो वैसा ही जब आप एक आदर्श या नमूना अपने ऊपर लगा लेते हैं तो आप रत्न किसको बना देते हैं? भीतर की किसी आत्मा को। और कीचड़ की परतें क्या हो गईं? मन और शरीर। तो अब आप सारी बात किसकी करते हैं? आत्मा की, क्योंकि आत्मा रत्न है; और मन और शरीर की आप बात ही नहीं करते, क्योंकि, “ये कोई बात करने की चीज़ है? फूँक मारकर उड़ाने वाली चीज़ है। गंदी चीज़ें हैं, इन पर क्या ध्यान देना! क्या मन खराब करना इनकी चर्चा करके!”

नहीं, उल्टा है। यहाँ तक ठीक है कि आत्मा के ऊपर मन और शरीर की परतें चढ़ी हुई हैं, लेकिन आत्म-साक्षात्कार का अर्थ आत्मा या हीरे का साक्षात्कार नहीं है भाई! आत्म-साक्षात्कार का अर्थ है: मन और शरीर का साक्षात्कार। ये भेद स्पष्ट होना बहुत ज़रूरी है। जब आप उदाहरण ले रहे थे हीरे का, तो उसमें आपको किसका साक्षात्कार करना है? हीरे का। वो बात उदाहरण तक ठीक है, क्योंकि हीरा अधिक-से-अधिक क्या है? पदार्थ ही तो है, उसका साक्षात्कार किया जा सकता है। उदाहरण में आपने जिस वस्तु का इस्तेमाल करा है, वो एक पदार्थ है, भले ही बड़ा मूल्यवान पदार्थ हो; हीरा है, उसका साक्षात्कार किया जा सकता है, जैसे हर पदार्थ का।

आत्मा थोड़े-ही पदार्थ है, उसका साक्षात्कार कैसे कर लोगे? साक्षात्कार फिर किसका करना होता है? साक्षात्कार करना होता है माया का, मन का। आत्म-साक्षात्कार का मतलब ये नहीं होता कि तुम अपने भीतर देखोगे और जगमग-जगमग आत्मा को…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

More from आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant