आत्म-साक्षात्कार का झूठ
आचार्य प्रशांत (आचार्य): जब हम रत्न की बात कर रहे होते हैं और उसकी सफ़ाई करनी है क्योंकि वो मिट्टी में पड़ा था, मैला हो गया है, कीचड़ जम गया है, तो हम कीचड़ की बात ऐसे करते हैं जैसे कि वो कोई बात करने लायक चीज़ ही नहीं है, “उसको तो जल्दी से हटाओ, फिर देखो कैसे रत्न जगमगाएगा।“ ठीक है न? बात का लहज़ा हमारा कुछ ऐसा रहता है। उस पूरी बात में ध्यान कीचड़ पर बहुत ही कम दिया जाता है, सारा ध्यान किस पर दिया जाता है? रत्न पर दिया जाता है। कीचड़ को तो यूँ ही…