आत्म-विश्वास से भरे मूर्खों को मत छेड़ो
जो लोग बिल्कुल ही अब डूब गए हैं आकंठ अहंकार में, उनको पूरा-पूरा आत्मविश्वास है कि वो जो कर रहे हैं, सहीं कर रहे है, उनसे बैठ कर के वाद-विवाद करना उचित नहीं है। श्रीमद्भगवद्गीता युद्धस्थल पर दी गई सीख है। कोरी सिद्धांतबाजी नहीं है। बहुत व्यवहारिक ग्रन्थ है।
श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि देखो जो लोग अतिआत्मविश्वास से भरकर के सच्चाई को बिल्कुल एक तरफ रख चुके हो और झूठ में ही पूर्णतया लिप्त हो, ऐसो को विचलित मत करना। ऐसो को जाकर के तुम सच का उपदेश दोगे, कोई लाभ नहीं होगा, नुक्सान ही हो जाना है। तुम्हारी ऊर्जा सीमित है, उसे उनके लिए बचाकर रखो जो सुपात्र है।
जो भयानक रुप से माया में लिप्त है, उसकी लिप्तता ही उसकी पहली सहायक होगी। पहले तो उसे अपनी लिप्तता के हाथों ही चोट खाने दो ताकि वो थोड़ा जगे। जब उसके कान थोड़े खुले, जब वो झुकने को और सुनने को थोड़ा तैयार हो जाए तब उससे बात करना।
कृष्ण कह रहे हैं: जो अज्ञानी अपने अज्ञान में ही मस्त हो, निष्ठावान हो, उसको विचलित मत करना। और जिसको जरा संशय उठा हो, जरा संदेह उठा हो उसको समझा देना।
गीता का एक-एक श्लोक बहुत वजन रखता है। एक वजनी हथियार की तरह है वो। अर्जुन को जब गीता जैसा हथियार दे दिया गया है तो अर्जुन उसका सदुपयोग करेगा। लेकिन जिसका इरादा ही कुत्सित हो, उसको जब तुम गीता जैसा हथियार दे दोगे तो उससे वो अपना अहंकार नहीं काटेगा, उससे वो अपने अहंकार की रक्षा करेगा।
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