आत्मा: दस सवाल, अंतिम जवाब!
आपके निश्चित रूप से अनंत जन्म हो चुके हैं, ठीक उसी तरह जैसे सागर की एक-एक बूंद अनंत बार अलग-अलग लहरों का रूप ले चुकी है। उसी तरह आप भी अनंत बार अलग-अलग रूप ले चुके हैं। धूल ही तो है न जो सबकुछ बनाती है? डायनासोर ख़त्म हो गए क्या? ना, धूल बने, वो धूल आज आपके शरीर में है।
एवोगैड्रो नंबर में (६.०२२×१०२३) १०२३ आता है, इसका मतलब समझ रहे हो? कितनी सारी यूनिट्स हो गईं हैं। एक मोल ऑक्सीजन का जो अभी मेरी नाक से निकल रहा है, वो आप तक ज़रूर पहुँच रहा है क्योंकि उसमें इतनी सारी यूनिट्स मौजूद हैं। मेरा जीवन आपका जीवन बनता जा रहा है। बल्कि आप ये समझिए, एक के आगे आपको २३ शून्य लगाने हैं, इस दुनिया में आज तक जो भी व्यक्ति जीवित रहा है, जो भी, उसके शरीर का कुछ-न-कुछ अंश आपके शरीर में मौजूद है – ये है पुनर्जन्म का अर्थ।
लेकिन जहाँ तक आपकी बात है, मैं जिससे अभी बात कर रहा हूँ, जिस विशिष्ट चेतना से मैं अभी बात कर रहा हूँ, उसका यह एकमात्र जन्म है और उसको यदि कष्ट है तो उसे अपने कष्टों का तत्काल उपचार करना चाहिए। अपने कष्टों के उपचार के लिए अगले-पिछले जन्म पर निर्भर मत रहो। सही कर्म अभी करो।
प्र१०: प्रणाम आचार्य जी, सही कर्म के विरुद्ध एक जो तर्क दिया जाता है – बूढ़ों से लेकर बच्चों तक जो सभी कहते हैं – वो महाभारत की एक कथा से आता है कि मरने के बाद मोक्ष मतलब स्वर्ग दुर्योधन को भी प्राप्त हुआ था। मुझे स्वर्ग या नर्क में ज़्यादा रुचि नहीं है, लेकिन कहानी में ऐसा अंत लाने की लेखक को क्या ज़रूरत थी?
आचार्य: कि अगर विरोध करना भी है तो कृष्ण का करो। पानवाले, चायवाले, रिक्शेवाले को क्यों परेशान करते हो? दम है तो जाओ भिड़ जाओ कृष्णा से। मिल जाएगा स्वर्ग, तुरंत स्वर्गवासी करेंगे वो। क्षुद्रता के विरुद्ध यह बात कही जाती है कि अगर विरोध ही करना है तो कम-से-कम विरोध में तो थोड़ी ऊँचाई दिखाओ, थोड़ा दम दिखाओ।
एक वीडियो है मेरा, उसमें मैंने शायद शीर्षक ही यही दिया था कि भिड़ जाओ ऋषियों से। बहुत होशियार बनते हो, बहुत तर्क चलाते हो, तो जाओ और उपनिषदों के ऋषियों के विरुद्ध तर्क चलाओ और दिखाओ कि तुम्हारे तर्क कैसे सफल होते हैं। छोटे-मोटे बच्चों को पकड़ना, उनपर अपने तर्क चला देना, ये बात ठीक नहीं है न? तो इसीलिए यह कहा जाता है कि रावण को भी मुक्ति मिल गई। दुर्योधन को बता रहे हो स्वर्ग मिल गया, जो भी बात है। कहीं तो ऊँचाई दिखाओ। अगर खलनायक ही बनना है तो सुपरविलन बनो।
क्षुद्रता मत दिखाओ, पेटिनेस मत दिखाओ, उससे कुछ नहीं मिलता।
अब बन मत जाना तुम। यह तर्क दुर्योधन बनने के लिए नहीं दिया गया है। ये तर्क क्षुद्रता के विरोध में दिया गया है। आशय यह नहीं है कि तुम दुर्योधन ही बन जाओ। आशय यह है कि किसी भी तरह की क्षुद्रता ना दिखाओ।