आत्मा को प्रकट न होने देना आत्महत्या है

आचार्य प्रशांत: फूल खिलकर झड़ जाए, कोई बात नहीं, सुन्दर घटना है। पर कली को ही मसल दिया जाए तो? और उसमें कली का ही सहयोग हो, कली की हामी हो तो? कि “हाँ, मसल दो मुझे”। उसे पता है अच्छे से कि जैसा जीवन वह जी रही है, जो कदम वह उठा रही है, उसमें मसल दी जाएगी, पर फिर भी वह कदम उठाए तो? इसको भ्रूण हत्या नहीं कहेंगे आप? किसी अजन्मे शिशु की गर्भ में हत्या की जाए तो उसे बुरा मानते हैं, पाप कहते हैं, अपराध कहते हैं, और जो हम अपनी ही हत्या करे हुए हैं, उसको क्या कहेंगे? आत्मा को प्रकट ना होने देना ही असली आत्महत्या है। आप जो हैं, आत्मा, उसको अभिव्यक्त ना होने देना ही तो आत्महत्या है।

तो हम सब नहीं हुए आत्महत्या के अपराधी? यह नहीं कहलाएगी ‘सुसाइडल लाइफ’? आपको पक्का है, पूर्ण विश्वास है कि जैसे आप हैं, ऐसा ही होने को पैदा हुए थे? यही नियति है आपकी? भरोसा है? सही में लगता है? जब आप पाँच के थे या पंद्रह के थे या पच्चीस के थे, तब इसी रूप में देखा था अपने आप को कि ऐसे हो जाएंगे?

उस भिखारी की कहानी सुनी है न, एक ही जगह पर बैठा रहता था हमेशा, और भीख माँगे। दशकों तक एक ही जगह पर बैठे-बैठे भीख माँगी उसने। वह जगह ही उसकी बन गई थी। मैं भी कई बार कह चुका हूँ। बड़ी दर्दनाक है इसीलिए भूलती नहीं। जब वह मर गया और वहाँ से उसका टाट, पत्थर, चीथड़े हटाए गए तो वहाँ गड्ढा सा मिला। वह उसी पर बैठा हुआ था, और उसमें रूपये-ही-रूपये, सोना भी, चाँदी भी, सब कुछ है। इतना जोड़े बैठा था वह। इतना जोड़े बैठा था वह और उसके ऊपर कैसा? भिखारी।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org